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संगीत- बद्ध-साहित्य - खण्ड
थपत मिथ्यामत रचत पर जियनि कौं दुख अंच |
सोचवंत अकाल केली हित न चित इक कंच । । २ ।। टेक कापोत लेस्या दुर विचार किरंच |
हृर्दै तसु
सीलहन जनि ध्यान आरति दया उर सुन रंच । । ३ । । टेक
धातु न जु रसु गंध सुद्ध असुद्ध देत खिमंच। तौल माप सु देत घटि बडि लेत मोलिनि वंच । । ४ । । टेक
भरत झठी साख कुवचन सहित जुत परपंच। क्रिया चोर कुधर्म उपदेसन कुधी उक तंच ।। ५ ।। टेक (१२) राग जैजैवंती
सो निरमल देव मेरे मन भायो है । गुन कौन अंत जाके गन- फनपति थाके ।
रसना सहस करि पास नांहि पायो है । । १ । । भाई असो.
घातिया करम चारि आठ दस दोष टारि ।
सकत सम्हारि भव भ्रमनु नसायो है । । २ । । भाई औसो.
परम अतिंद्री ज्ञान प्रगटयौ सहज आन ।
अति सुख दान परधान पद पायो है । । ३ । । भाई असो.
राग दोष मोह मल खोइ कैं भए सबल । देवीदास ताहि वार-वार सिर नायो है । । ४ । । भाई असो. (१३) राग जैजैवंती
सेवैं परकामिनी जे जन धक-धक हैं | टेक ।। सुमतिन घट माहीं सुभ करतूति नांही । करनी असुभ दुरगति मैं ढरक हैं । । १ । । सवैं. विघन करत भारी कुल कौं लगावैं गारी टुक सुख हेत मूढ परत भरक हैं । । २ ।। सेवैं.
सुरग मुकति दोई तिन्हि कौं कठिन सोई । सुगम सहज गति नियरी नरक हैं । । ३ । । सेवैं.
सील सुरतरू खोवैं विष को विरख वो वैं । दुख के सु नर कौन विवर कहैं । । ४ । । सेवैं. (१४) राग रामकली
देखि कैं स्वरूप परमातमा मैं रचिये । धरि निज गुन ध्यान रुचि परतीति आन
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