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देवीदास-विलास गर्भ जन्म तप ग्यान सु ध्यान दिढाइकैं। पायो पद निरवान सुकर्म नसाइकैं।। सु नसाइकैं बसु कर्म कल्यानक सुपंच विराजही। जग जाल तजि अनुभूति सजि निज मिले स्वारथ साजही। जह भूख प्यास न त्रास राग न दोष मोह न जानिये। जह रोग सोग वियोग विस्मय खेद स्वेद न मानिये।।२५।। जनम धरन तह मरन जरादिक दुख नहीं। मन वच तन पर जोग रहे जहँके तहीं। सम्यक दरसन ग्यान आदि वस गुन लहे। सिद्ध सहित पुनि तेन जात मो पर कहे।। मो पर कहे किम जाहि जे गन आदि अंत न जा सकौ। को करि सकै निरधार मुनिगन सुद्ध ज्ञान प्रकासकौ।। श्रीवर्द्धमान जिनेस सिद्ध स्वरूप नित प्रति ध्याइए।
कर जोरि देवियदास तिनिकौं सदा सीसु नवाइये।।२६।। (३) लछनाउली छप्पय
आदि जिनेश्वर वृषभ अजित गजराज विराजत। संभवनाथ तुरंग कपी अभिनंदन छाजत।। चकहा सुमति जिनेश पद्म पदमप्रभ सोहै। जिनसुपास सतियो चंद्र चंद्रप्रभ मोहै।। कहि पुष्पदन्त लच्छन मगर सीतल श्रीजिन वृच्छधर। गैंडा श्रियंस सोभित प्रगट वांसपूज महिषा सुवर।।१।। लच्छन विमल वराह सहित सेई अनन्त जिन। धर्मनाथ पद वज्र सांति जिन म्रग विलोकि पिन।। छेरौ कुंथ जिनेस अरह जिनराज मीन भनि।। मल्यणाथ तह कलस मुनिसोबत सु कच्छ गनि।। नमि कमल जक्त जिनराज कहि नेमिनाथ पग संख हुव।
अहि पार्वनाथ जिन सिंघ पुनि वर्द्धमान जिनदेव जुव।।२।। (४) चक्रवर्ती विभूति वर्णन
सहस बत्तीस सासते देस धन कन कंचन भरे विसेस। विपुल वाडि बेढे चहुंवोर ते सब गांव छानवै कोर।।१।।
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