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देवीदास - विलास
देव सुदेव सही गुरु सो गुरु धर्म सुधर्म अराध खरौ रे । औरव नाउ नही जग ताल मैं पंचम काल कौ भौर पर्यो रे । । ४ । ।
दोहरा
फिरि बहु बौलै सुगुरु कहै बात समुझाइ ।
भैया पंचम काल कौं डरु करि मति कचियाइ ।।
सवैया तेईसा
पंचम काल तौ काल सही कछु पंचम काल न जीव कौ लच्छन । औसर पाइ जगै जब ज्ञान सुचेतनि तौ चिरकाल वि जच्छन।। उत्तिम काल मिलैं जड दर्व सु तौ पुनि चेतन हो तसु दच्छन । सम्यक दिष्टि नहीं जब लौं तब लौं जिय कौं अनभौ सुप्रतच्छन । । ५ । ।
दोहरा
सेव कही अरिहंत की गुरु उपदेस मझार । सो कैसे अरिहंत पुनि पूछत सिष्य विचार । । कवित्त तुक्कसकौ
नास करे जिनि चारि हैं कर्म अनंत चतुष्टय प्रापति केवल । जोग धरे उर सार हैं धर्म सु संत पुनीत महामति केवल ।।
भोग डरे भव जार है भर्म समंत सदा सुख भावत केवल । लोक तरे यहु पार हैं पर्म सु अंत करे जग पावत केवल । । ६ । ।
दोहरा
अब निरगंथ कहौं जती परम सुद्ध पद लीन। आचारज उवझाइ पुनि साध परम गुर तीन ।।
कवित्त तुक्कसकौ
दंसन ज्ञान चरित्र सु लीन सुवीरजवंत तपै धुअ आरज । है परधान पवित्र प्रवीन सु ते गुरु संत जपै होइ कारज । ।
सो अरि जानत मित्र सु वीन लहैं भव अंत सु है भव तारज । ध्यावत ध्यान विचित्र सु छीन दया सब जंतनि पै सु अचारज । । ७ । ।
दोहरा
निर्विकार निर्भय निपुन महा परम सुख कंद । निर्विकल्प निरमल सुगुरु वरनौं परमानंद ।।
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