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देवीदास-विलास मन' जाकौ निज ठौर है परसि आतमाराम। कहि साधौ जाकै नहीं धंधौ आठौं जाम।।९।। जिनवर इक सम ध्यान वसु तसु आरति भै मैन। जब इस ध्यावत आतमैं नरक मनस सुर भैन।।१०।। सबै सु परनर सुरति सौं तिर सुर नर पसु बैस। समै भनत इक तन गुमैं गुनत कि इत नभ मैस।।११।। दुविध विरोध विनासनी स्यादवाद तसु अंक। सो निवसौ हमरे हृ, जिनवानी निकलंक।।१२।। जनरे जानत नव नय नही नयनहीन जिन बैन। लीन चीन बिन तीन गुन ग्यान हीन सुन जैन।।१३।। भज वन तम जग दावि गन अति धूर सहै बैन। भव तजि दाग अधू सवै जिन मग बिन तरि है न।।१४।। काया चेतनि कै नहीं काया चेतन भेक। काया चेतनि तँ जुदी काया चेतन एक।।१५।। नई नव सरस वर दसा दरव सरस वन ईन न हीन गुर पद चिर भनी भर चिद पर गुन हीन।१६।। मैन नैन तन कान धुनि घान वैन मन हैन। ग्यान प्रान गन जान पन लीन तीन गुन अँन।।१७।। दरसन ग्यान चारित्र तप मंडित सिवपुर पंथ। बंदौ मन वच काइ मैं ते गुर श्रीनिरगंथ।।१८।। नमौं जित नव सिव पुत ज्यौ. तपु वसि वन तजि भौंन। नमौं चरन गुरवर तपी तरवर गुन रच मौन।।१९।। दुरित हरन नर हरत मन नमत चरन गुनवंत। विगत करन नरक सु गमन न मग कुटिल सुमहंत।।२०।। सुधी निपुन गुरवरनऊँ नरवर गुन पुनि धीसु। सुखी सरन अरि कस करें कस करि अनरस खीसु।।२१।। तजी विभव न सरन गहत तकि सुर सिव रस नीत।
तनी सरवसि रसु कित तह गन रस नव भवि जीत।।२२।। १. यह पद्य उपदेशपच्चीसी में भी आया है। देखिए उसकी पद सं. २/१०/२४ २. यह पद्य भी उपर्युक्त प्रकरण में आया हैं। देखिए २/१०/२५
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