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आभार प्रदर्शन होती है, साथ ही अनेकविध प्रासंगिक एवं आनुषंगिक सामग्री के अध्ययन की भी अपेक्षा होती है। इतना सब किए जाने के बाद भी उसमें अनेक त्रुटियों के रह जाने की सम्भावनाएँ हैं। उनके लिए मैं सहदय सुविज्ञ पाठकों से सादर क्षमायाचना करती हुई विनम्र प्रार्थना करती हूँ कि वे उन त्रुटियों की सूचना मुझे देने की कृपा करें, जिससे अगले संस्करण में उनका संशोधन किया जा सके। किमधिकम्
तुक अच्छर घटि बढि सबद अरु अनर्थ जो होई। अल्पमति मुझ पर छिमा करि धरियो बुध सोई।।
विनयावनत विद्यावती जैन
श्रुतपंचमीमहापर्व १३ जून, १९९४ महाजन टोली नं. २ आरा (बिहार) ८०२३०१
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