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________________ देवीदास-विलास काव्य जैसी दुरूह एवं मस्तिष्क को द्राविड़ी प्राणायम करा देने वाली शैली में भी कुछ आध्यात्मिक रचनाएँ लिखकर अपनी विशिष्ट तकनीकी प्रतिभा का परिचय दिया है। उनके अतिरिक्त भी रहस्यवादी एवं कूटपदों की रचनाकर हिन्दी-साहित्य में कबीर एवं सूर के बाद की अवरुद्धप्राय धारा को भी पुनरुज्जीवित करने का प्रयत्न किया। उसकी विस्तृत चर्चा प्रस्तुत ग्रन्थ की प्रस्तावना में यथास्थान की गई है। देवीदास एक सन्त कवि थे और स्वस्थ समाज एवं राष्ट्र निर्माण की दिशा के गम्भीर विचारक थे। इसीलिए “मनमथ नेजा नोंक सी' के रीतिकालीन घोर संयोगशृंगार की साहित्यिक-धारा के प्रवाह को उन्होंने आध्यात्मिक मोड़ देने का प्रयत्न किया। जिस प्रकार सूर एवं मीरा ने करताल लेकर अपनी संगीतात्मक राग-रागनियों को गा, बजाकर गाँवों एवं नगरों में अध्यात्म का अलख जगाया, उसी प्रकार देवीदास ने भी विविध शास्त्रीय एवं लोकानुरूप विविध राग-रागनियों के माध्यम से बिना किसी वर्गभेद अथवा वर्णभेद के, विविध विदेशी आक्रमणों से जर्जर एवं विविध अपमानों से उत्तप्त एवं पीड़ित तथा अपनी प्राचीन परम्पराओं की सुरक्षा के लिए व्याकुल मानवता में आशा एवं विश्वास जगाने का अथक प्रयत्न किया। वर्णी संस्थान डॉ. (श्रीमती) विद्यावती जैन के प्रति अपना आभार व्यक्त करता है, जिन्होंने कठोर परिश्रम कर साहित्य जगत के एक विस्मृत महाकवि देवीदास की अप्रकाशित दुर्लभ रचनाओं का उद्धार कर उनका आधुनिक मानदण्डों के अनुरूप सम्पादन किया तथा विविध दृष्टिकोणों से तुलनात्मक एवं साहित्यिक समीक्षा प्रस्तुत की। मौलिक ग्रन्थ लेखन की अपेक्षा पाण्डुलिपियों का सम्पादन जितना दुरूह है, उतना ही वह धैर्यसाध्य, कष्टसाध्य एवं व्ययसाध्य भी। किन्तु सम्पादिका ने अपने साहित्यिक एवं सेवा सम्बन्धी अन्य दायित्वों का निर्वाह करते हुए भी इस दिशा में जो श्रमसाध्य कार्य किया है, वह अत्यन्त सराहनीय है। श्री गणेशवर्णी दि. जैन संस्थान का यह एक गौरव-ग्रन्थ माना जायगा, क्योंकि पूज्य गणेशप्रसाद जी वर्णी (जिनकी पुण्य-स्मृति में उक्त संस्थान संस्थापित है) स्वयं बुन्देलखण्डी थे और महाकवि देवीदास का जन्म-स्थल एवं साहित्यिक साधनास्थल भी उनके जन्म-स्थल के अंचल में ही था और दोनों ही बुन्देलीभाषा एवं बुन्देलीभूमि के महान् सपूत थे। अतः यह एक सुखद संयोग ही माना जायगा कि प्रस्तुत ग्रन्थ का प्रकाशन वर्णी-संस्थान की ओर से किया जा रहा है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003998
Book TitleDevidas Vilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyavati Jain
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year1994
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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