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अनेकान्त और स्याद्वाद : ५ पाए जाते हैं। जहाँ तक भारतका सम्बन्ध है धर्मको दर्शनसे और दर्शनको धर्मसे पृथक् नहीं किया जा सकता है। दोनों परस्परमें मिले हुए हैं। दोनोंका लक्ष्य भी एक है और वह है प्राणीको संसारके दुःखोंसे छुड़ाकर मुक्ति प्राप्त कराना। प्रायः भारतीय समस्त धर्मों और दर्शनोंका लक्ष्य एक ही है। उस लक्ष्यकी प्राप्तिके मार्ग अवश्य भिन्न-भिन्न हैं। लेकिन भारतके बाहर यह बात नहीं है। पाश्चात्य धर्म और दर्शन में कोई सम्बन्ध नहीं है। वे पूर्व और पश्चिम दिशाकी तरह एक दूसरेसे नितान्त भिन्न हैं। पाश्चात्य दर्शनकी उत्पत्ति आश्चर्यसे हुई है और वह केवल जिज्ञासाकी पूर्ति करता है। संसारकी विचित्रताको देखकर लोगोंके मनमें एक प्रकारका आश्चर्य ( Wonder ) होता है और जिज्ञासा होती है कि यह क्या है उसी आश्चर्यका समाधान और जिज्ञासाकी पूर्ति दर्शन करता है। ___ यह पहले ही बतलाया जा चुका है कि भारतमें धर्म और दर्शनका घनिष्ठ सम्बन्ध है और दोनोंका लक्ष्य भी एक ही है। भारतीय दर्शन दो भागोंमें विभक्त है-वैदिक दर्शन और अवैदिक दर्शन । जो वेदको मानते हैं वे वैदिक दर्शन हैं और जो वेदको नहीं मानते वे अवैदिक दर्शन हैं। वैदिक दर्शन छह हैं-सांख्य, योग, न्याय, वैशेषिक, मीमांसा और वेदान्त । अवैदिक दर्शन तीन हैंजैन, बौद्ध और चार्वाक । प्रत्येक दर्शनके अपने-अपने विशेष सिद्धान्त हैं। जैनदर्शनके जितने सिद्धान्त हैं उनमें अनेकान्त तथा अनेकान्तसे सम्बन्धित स्याद्वाद अपना एक विशिष्ट स्थान रखता है। यहाँ उसी अनेकान्तका कुछ परिचय करा देना इस पुस्तकका उद्देश्य है।
अनेकान्तका स्वरूप अनेकान्त क्या है ? साधारण जनकी बात तो दूर है अभी तक
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