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४ : अनेकान्त और स्याद्वाद
संघर्ष के वातावरणका ही प्रयत्न करेगा । दूसरी ओर मनुष्य के आचारका प्रभाव भी विचारों पर पड़ता है । जिसका ईश्वर में विश्वास नहीं है वह यदि प्रतिदिन मन्दिर जाने लगे तो उसका ईश्वर में विश्वास हो सकता है । जिसका अहिंसा में विश्वास नहीं है वह यदि अहिंसाकी ओर प्रवृत्ति करने लगे तो अहिंसा में उसका विश्वास हो सकता हैं । जो ऊपरसे अपवित्र रहता है उसके विचार पवित्र कैसे हो सकते हैं । बाह्य वातावरणका प्रभाव मनुष्यके विचारों पर पड़ता है । कहा भी है- 'जैसा पीवे पानी वैसी बोले बानी । जैसा खावे अन्न वैसा होवे मन' । ठीक भी है-मांसाहारियोंकी प्रवृत्ति क्रूर ही होती है । इसके विपरीत शाकाहारियों का हृदय स्वभावसे कोमल होता है । इतना सब कहने का अर्थ केवल आचार और विचार में सम्बन्ध बतलाना है । विचारका प्रभाव आचार पर पड़ता है और आचारका प्रभाव विचार पर पड़ता है। आचार और विचारका सम्बन्ध बतलानेसे धर्म और दर्शनका सम्बन्ध स्वयं सिद्ध हो जाता है । धर्म और दर्शन में बड़ा गहरा सम्बन्ध है । वैसा ही सम्बन्ध जैसा कि शरीर और आत्माका ।
यह भी सत्य है कि धर्म और दर्शन अनादिकाल से चले आए हैं । इस धरातल पर अनेक धर्मों और दर्शनोंका अस्तित्व सदा से रहा है । ऐसा कोई समय नहीं हो सकता जब किसी एक ही धर्मका सार्वभौम अधिकार संसार पर तो क्या, भारत पर भी रहा हो । हाँ, यह अवश्य है कि किसी धर्मका कभी अधिक प्रचार हो और कभी कम । धर्म और दर्शनका अस्तित्व परमावश्यक भी है, क्योंकि धर्म मनुष्यको नैतिक ( Ethical ) बनाता है और दर्शन विचारवान् ( Rational ) बनाता है । भारत में जैनधर्म, बौद्धधर्म, वैदिक 1 धर्म आदि विविध धर्मोका तथा इनके विविध दर्शनोंका सद्भाव दृष्टिगोचर होता है । भारत के बाहर भी विविध धर्म और दर्शन
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