________________
३० : अनेकान्त और स्याद्वाद करनेवालोंसे निवेदन है कि वे शान्त मस्तिष्क होकर वस्तुके विषयमें थोड़ा विचार करें। जैनदर्शनका अपना कुछ नहीं है और उसने सब कुछ अन्य दर्शनोंसे उधार लिया है इसका उत्तर यह भी हो सकता है कि अन्य दर्शनोंका अपना कुछ नहीं है और जैनदर्शन की अनेक बांतोंमेंसे एक-एक बातको लेकर अन्य दर्शनोंकी सत्ता है। अर्थात् जैनदर्शन जहाँ सम्पूर्ण सत्यको प्रकट करता है अन्यदर्शन वहाँ सत्यके एक-एक अंशको प्रकट करते हैं । वे सत्यके एक अंश को प्रगट करते हैं, इसमें तो कोई बुराई नहीं है लेकिन बुराई इसमें है कि वे सत्यके एक-एक अंशको सम्पूर्ण सत्य मान बैठे हैं । स्याद्वाद सिद्धान्त कल्पित नहीं है और न कहींसे उधार लिया गया है। वह तो वस्तुके यथार्थ स्वरूपका प्रतिपादक होनेसे वैज्ञानिक है, स्वतः प्रतिष्ठित है और सुव्यवस्थित है ।
उपसंहार इस पुस्तकमें जैनदर्शनके अनेकान्त और स्याद्वाद सिद्धान्तपर संक्षेपमें विचार किया गया है। साधारण जनोंकी बात तो छोड़ दीजिये, बड़े-बड़े दिग्गज विद्वानोंने भी स्याद्वादको नहीं समझ पाया है । इस विषयमें अपनी अज्ञतावश उन्होंने जो मनमें आया सो लिख दिया है। ऐसे विद्वानोंको भ्रान्त धारणाओंका परिहार इस लघु पुस्तकमें नहीं किया गया है, क्योंकि इसका उद्देश्य सर्वसाधारणको थोड़ेमें और सरल भाषामें अनेकान्त और स्याद्वादके विषयमें कुछ ज्ञान कराना है। वैसे अनेकान्त और स्याद्वाद इतना गंभीर, विस्तृत एवं गूढ़ सिद्धान्त है कि उसके ऊपर एक बड़ा ग्रन्थ लिखा जाने योग्य है। अनेकान्त और स्याद्वाद क्या है तथा दूसरे लोगोंने उसे किस रूपमें समझा है, इस विषयमें कुछ अजैन विद्वानोंके विचार देखिए:
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org