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अनेकान्त और स्याद्वाद : १५
अंश बढ़ ही सकता है । ऐसा होने पर भी उसकी पर्यायें क्षणक्षण में बदलती रहती हैं । इसलिए पर्यायकी अपेक्षासे पदार्थ अनित्य भी है ।
इसी प्रकार पदार्थ एक और अनेक भी है । कोई भी पदार्थ न सर्वथा एक है और न सर्वथा अनेक है । मिट्टी से बना हुआ घट एक और अनेक दोनों है । मिट्टी द्रव्यकी अपेक्षासे घट एक है क्योंकि घट मिट्टीका एक अभिन्न पिण्ड है । लेकिन वह पिण्ड मिट्टी के अनेक परमाणुओंके एकसाथ मिलनेसे बनता है इसलिए अनेक परमाणुओं की अपेक्षासे घट अनेक है । अथवा रूप, रस आदि गुण और पर्यायोंकी अपेक्षासे घट अनेक है । यही बात प्रत्येक पदार्थ के विषय में है । आत्मद्रव्य भी अखण्ड द्रव्यको अपेक्षासे एक है और प्रदेशोंकी अपेक्षासे अनेक है । अथवा ज्ञानादि गुण और सुख-दुःखादि पर्यायों की अपेक्षा से अनेक है । संसार के सम्पूर्ण पदार्थ भी सत्ता की अपेक्षासे एक हैं । सत्ताकी दृष्टिसे चेतन और अचेतन पदार्थोंमें कोई भेद नहीं है, दोनों समानरूपसे सत् हैं अतः दोनों एक हैं । ऐसा होने पर भी प्रत्येक पदार्थकी सत्ता पृथक्-पृथक् है । घटकी सत्ता से पटको सत्ता भिन्न है । अत: घट, पट आदि पदार्थ अनेक भी हैं। प्रत्येक पदार्थ एकरूप और अनेकरूप अर्थात् अनेकान्तात्मक है । एकत्व और अनेकत्व एक साथ वस्तुमें रहते हैं ।
इसप्रकार सत्त्व और असत्त्व, नित्यत्व और अनित्यत्व, एकत्व और अनेकत्व इन तीन परस्पर विरोधी धर्मयुगलों (धर्मोका जोड़ा ) के द्वारा वस्तु अनेकान्तात्मक सिद्ध होती है ।
वस्तुमें अनेक धर्मोके रहनेका नाम अनेकान्त नहीं है किन्तु विरोधी अनेक धर्मयुगलों के रहनेका नाम अनेकान्त है । कोई वस्तु सत् है, नित्य है, और एक है; इतना होनेसे वह अनेकान्तात्मक नहीं मानी जा सकती । किन्तु वह सत् और असत् दोनों होने से
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