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भार अनेक
व-असत्त्वकी तरह
पिण्ड
मयुगल वस्तुमें रहने
१६ : अनेकान्त और स्याद्वाद अनेकान्तात्मक है । इसीप्रकार नित्य और अनित्य, एक और अनेक होनेसे वह अनेकान्तात्मक है । सत्त्व-असत्त्वकी तरह अन्य भी अनेक विरोधी धर्मयुगल वस्तुमें रहते हैं, इसलिए अनेक विरोधी धर्मोंका पिण्ड होनेसे वस्तु अनेकान्तात्मक है। अनेक विरोधी धर्म किस प्रकार वस्तुमें रहते हैं इस बातको पहिले बतलाया जा चुका है। प्रत्येक धर्म भिन्न-भिन्न अपेक्षासे रहता है इसलिए विरोधी धर्मों के एक साथ रहने में कोई विरोध नहीं आता।
लोकमें भी देखा जाता है कि एक ही व्यक्ति पिता है और पिता नहीं भी है। आप सोचेंगे कि यह कैसे हो सकता है कि मोहन पिता भी हो और पिता नहीं भी हो। लेकिन थोड़ा शान्त मनसे विचार कीजिए कि मोहन सोहनका ही पिता है, न कि संसारके समस्त पुत्रोंका। यदि मोहन कहे कि मैं तो पिता ही हूँ अर्थात् संसारके समस्त पुत्रोंका पिता हूँ तो उसपर ऐसी मार पड़े कि शिरमें एक भी बाल न रहे । इसलिए मोहनको यह मानना पड़ेगा कि वह सोहनका ही पिता है और अन्य लोगोंके पुत्रोंका अ-पिता ( पिता नहीं) है। अर्थात् मोहन पिता और अ-पिता दोनों है। अब बतलाइए कि मोहनके पिता और अ-पिता होने में कौन-सा विरोध है। इसीप्रकार एक ही देवदत्त अपेक्षाभेदसे गुरु भी है, शिष्य भी है, शासक भी है, शास्य भी है, ज्येष्ठ भी है, और कनिष्ठ भी है । एक ही स्त्री अपेक्षाभेदसे माता भी है और पत्नी भी । पं० जवाहरलाल नेहरू प्रधानमंत्री भी हैं और नहीं भी हैं । आप कहेंगे कि यह कैसे ? लेकिन थोड़ा सोचिए तो वह भारतके ही प्रधानमंत्री हैं न कि ब्रिटेन, अमेरिका आदि समस्त देशोंके । इसलिए भारतका अपेक्षासे पं० जवाहरलालजीको प्रधानमंत्री और ब्रिटेन आदिको अपेक्षासे अप्रधानमंत्री मानने में कौन-सा विरोध है ? अर्थात् कोई नहीं । प्रधानमंत्रित्व और अप्रधानमंत्रित्व दो विरोधी
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