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अनेकान्त और स्याद्वाद : १३ एक व्यक्तिको स्वर्णघटकी आवश्यकता थी, दूसरेको मुकुटकी और तीसरेको केवल स्वर्णकी आवश्यकता थी। वे सुनारकी दुकानपर गये। इतनेमें क्या देखते हैं कि सुनार सोनेके घटको तोड़कर मुकुट बना रहा है। इस पर सोनेके घटको चाहनेवाले व्यक्तिको शोक हुआ, क्योंकि उसके अभीष्ट घटका नाश हो गया था । मुकुटको चाहने वाले व्यक्तिको मुकुटकी उत्पत्तिसे बड़ा हर्ष हुआ। लेकिन केवल सोनेको चाहनेवाले व्यक्तिको न हर्ष हुआ और न विषाद । घड़ा बना रहता तो भी उसका काम चला जाता और मुकुट बन गया तो भी उसकी कोई हानि नहीं है। इससे यह सिद्ध होता है कि वस्तु उत्पाद, व्यय और ध्रौव्ययरूप है । यदि वस्तु ऐसी न होती तो एक व्यक्तिको मुकुटकी उत्पत्तिसे हर्ष; दूसरे व्यक्तिको घटके नाशसे शोक और तीसरे व्यक्तिको दोनों अवस्थाओंमें माध्यस्थभाव क्यों होता। अतः वस्तु उत्पादव्ययध्रौव्यात्मक है यह बात प्रत्यक्षसिद्ध है।
वस्तुको उत्पादव्ययध्रौव्यात्मक मानना आवश्यक भी है। इसके विना काम ही नहीं चल सकता। सर्वथा नित्य या सर्वथा अनित्य वस्तु कुछ भी कार्य नहीं कर सकती है। सर्वथा नित्य वस्तु सदा ज्यों-की-त्यों रहेगी। उसमें किंचित् भी विकार न होगा। फिर भला उसके द्वारा किसी कार्यकी आशा कैसे की जा सकती है। कहा भी है
नित्यत्वैकान्तपक्षेपि विक्रिया नोपपद्यते। प्रागेव कारकाभावः क प्रमाणं व तत्फलम् ।।
आप्तमीमांसा ३७ सर्वथा नित्य पक्षमें किसी भी प्रकारकी क्रिया ( कार्य ) नहीं हो सकती है। क्योंकि इस पक्षमें परिणमनके अभावमें कोई भी पदार्थ कारक नहीं हो सकता है । जो सदा एकसा रहेगा-जो पहले
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