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१२ : अनेकान्त और स्याद्वाद
कुछ दिन बाद एक साथ मैला नहीं होता है किन्तु प्रतिक्षण थोड़ा थोड़ा मैला होता रहता है । पकने के लिए वर्तन में चूल्हे पर रखे गए चावल एक साथ नहीं पकते, किन्तु चूल्हे पर बर्तन में डालने के समयसे ही उनमें थोड़ा थोड़ा पाक होता रहता है । इसी तरह आत्मा, आकाश आदि पदार्थों में भी प्रतिक्षण परिणमन होता रहता है। इस प्रकारके परिणमनके होते रहनेपर भी वस्तुका सर्वथा नाश कभी नहीं होता । जो वस्तु जितनी है वह सदा उतनी ही रहती है, केवल उसकी पर्यायें बदलती रहती हैं । आधुनिक विज्ञान भी इस बात को स्वीकार करता है कि वस्तुके सूक्ष्म अंशका भी कभी नाश नहीं होता है । तात्पर्य यह है कि प्रत्येक पदार्थ द्रव्यकी अपेक्षासे नित्य है और पर्यायकी अपेक्षासे अनित्य है । दूसरे शब्दों में प्रत्येक पदार्थ उत्पाद, व्यय और ध्रोव्यरूप है । वस्तुका लक्षण भी यही हैं । जो उत्पाद, व्यय और ध्रौव्य सहित है वह सत् कहलाता है और सत् ही द्रव्यका लक्षण है ।
उत्पादव्ययध्रौव्ययुक्तं सत् । सद् द्रव्यलक्षणम् ।
त० सू० ५-२९, ३०
किसी भी पदार्थकी एक पर्यायके नष्ट होनेके साथ ही दूसरी पर्याय उत्पन्न हो जाती है । लेकिन इससे द्रव्य का कुछ भी बनता बिगड़ता नहीं हैं, वह दोनों पर्यायोंमें विद्यमान रहता है । घटके फूट जाने पर कपाल ( खपड़ियाँ ) उत्पन्न हो जाते हैं। लेकिन इससे मिट्टी का क्या हुआ । वह तो जैसे घट पर्याय में थी वैसे ही कपाल पर्याय में भी है । पदार्थको उत्पाद, व्यय और धौव्यरूप सिद्ध करनेके लिए निम्न श्लोक पर ध्यान दीजिए
नाशोत्पाद स्थितिष्वयम् ।
घटमौलिसुवर्णार्थी शोकप्रमोदमाध्यस्थ्यं जनो याति सहेतुकम् ॥
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आप्तमीमांसा ५९
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