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________________ (४५) वचन किरन प्रसरनतैं भविजन, मनसरोज सरसाया है 1 भवदुखकान सुख विसतारन, कुपथ सुपथ दरसाया है ॥ १ ॥ विनसाई कज ेजलसरसाई, निशिचर समर रे दुराया है । तस्कर' प्रबल कषाय पलाये, जिन धनबोध" चुराया है ॥ २ ॥ लखियत' उडुन' कुभाव कहूं अब, मोह उलूक" लजाया है हंस कोक को शोक नश्यो निज, परनति" चकवी पाया है ॥ ३ ॥ कर्मबंध१२ कजकोष बंधे चिर भवि ३ अलि मुंचन४ पाया है दौल उजास१५ निजातम अनुभव उर जग अन्तर छाया है ॥४॥ । । .१६ (१३१) ज्ञान" भान की, निरखत. ॥ १ ॥ बिनस्यो विषाद २२, निरखत" जिन चन्द्र-वदन स्वपर सुरचि आई ॥ निरखत. ॥ टेक ॥ प्रगटी निज" आनकी पिछान कला उदोत होत काम, जामिनी २० सास्वत आनंद स्वाद पायो आन २३ में अनिष्ट इष्ट कल्पना नसाई २४ साधी निज साधकी समाधि मोह व्याधि की, उपाधि को विराधि २५ कै अराधना सुहाई ॥ निरखत. ॥ ३ ॥ धन २६ दिन छिन आज सुगुनि, चिते जिनराज अब, सुधरे सब काज दौल अचल सिद्धि पाई ॥ निरखत. ॥ ४ ॥ ॥ निरखत. ॥२॥ पलाई २१ ॥ (१३२) .२८ दरस 11 २९ .३०. 11 8 11 शिवमग दरसावन रावरो २७ शिवमग. ॥ टेर ॥ पर-पद-चाह-दाह गद” नाशन, तुम बच " भेषज - पान सरस ॥ शिव. गुण चितवत निज अनुभव प्रगटै, विघटै विधि र ठग दुविध तरस ३३ ॥ २ ॥ 'दौल' अबाची संपति सांची, पाय रहै घिर राच सरस २ ॥ शिव. ॥ ३॥ (१३३) _३७ मैं हरख्यौ ३४ निरख्यौ ३५ मुख तेरो, नास" न्यस्त नयन भ्रूहिलयन वयन निवारन मोह अंधेरो परमे करमै निजबुधि” अबलों भवसर” में दुख सह्यो घनेरो । Jain Education International ॥ मै. ॥ १ ॥ १. फैलने से २.कमल ३.युद्ध ४. नष्ट हुआ ५. चोर ६. भाग गये ७. ज्ञानरूपी धन ८. देखते हैं ९. नक्षत्र १०.उल्लू ११.आत्मपरिणतिरूपी चकवी १२.कर्मबंधन रूपी कमल कोष में बंधे १३. भव्यजन रूपी भौरे १४. मुक्ति १५. प्रकाश १६. ह्रदय में छा गया १७. देखने से १८. आत्म स्वरूप की १९ ज्ञान - सूर्य २०. रात्रि २१. भाग गई २२. खेद २३. अन्य में २४. नष्ट हो गई २५. नष्ट करके २६. धन्य २७. आपका २८. दर्शन २९. रोग ३०. वचन ३१. औषध ३२. कर्मरूपी छग ३३.दया ३४. प्रसन्न हुआ ३५.देखा ३६. नरक पर दृष्टि लगाये ३७ भौंह नहीं हिलती ३८. आत्मवुद्धि ३९. संसार सागर । For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003995
Book TitleAdhyatma Pad Parijat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanchedilal Jain, Tarachand Jain
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year1996
Total Pages306
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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