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________________ (१७) (५१) मत्तगयंद (सवैया) शांति जिनेश जयौ जगतेश, हरै अघताप निशेश की नाई३ । सेवत पाय सुरासुरराय, नमै सिरनाय महीतल ताँई ॥ मौलि' लगै मनिनील दिपें, प्रभुके चरनौं झलके वह झाँई । सूंघन पाय-सरोज-सुगंधि, किधौं चलिये अलि पंकति आई ॥ (५२) कवित्त - मनहर शोभित प्रियंग अंग देखें दुख होय भंग,११ लाजत अनंग जैसें दीप भान्भास२ ते ॥ बाल ब्रह्मचारी उग्रसेन की कुमारी जादौ,१३ नाथ से निकारी जन्मकादौ१४ दुखरास५ तें ॥ भीम६ भवकानन मैं आन७ न सहाय स्वामी । अहो नेमी नामी तकि८ आयौ तुम तासतै ।। जैसे कृपाकंद बन जीवन की बंद छोरी ॥ त्यों ही दास को खलास' कीजै भवपास २१ ॥ (५३) ___ छप्पय (सिंहावलोकन) जनम२२ जलधि - जलजान, जान जनहंस - मानसर२३। सरब" इन्द्र मिलि आन,२५ आन जिस धरहिं सीस पर पर उपकारी बान,२६ बान उत्थपइ२७ कुनय गन । मन सरोज वनभान, भान मम मोह तिमिर२८ धन । घन वरन देह दुख-दाह-हर हरखत हेरि मयूर मन । मनमथ-मलंग-हिर पासजिन, जिन बिसरहू छिन-जगतजन ।। १. पापों का ताप (दुख) २. चन्द्रमा ३. तरह ४. चरण ५. मुकुट ६. नीलमणि ७. चमकता है ८. सूंघने के लिए ९. भौरों की पंक्ति १०. सुन्दर ११. नाश १२. सूर्य के प्रकाश से १३. यादव १४. जन्म-कीच १५. दुख की राशि से १६. भयानक १७. अन्य १८. देखकर १९. उसी से २०. मुक्त २१. संसार जाल से २२. जन्म - समुद्र २३. मान सरोवर २४. सभी २५. लाकर २६. आदत २७. नाश करना २८. मोह अन्धकार । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003995
Book TitleAdhyatma Pad Parijat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanchedilal Jain, Tarachand Jain
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year1996
Total Pages306
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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