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(१६) ऐसे आदिनाथ के अहनिस, हाथ जोरि हम पांय परे हैं ॥
(४७) काउसग्गमुद्रा' धरि वन मैं, ठाढ़े रिषभ रिद्धि तजि दीनी । निहचल' अंग मेरु है मानौं, दोऊ भुजा छौर जिन दीनी ॥ फंसे अनंत जंतु जग चहले, दुखी देख करुना चित लीनी । काढ़न काज तिन्हैं समरथ समरथ प्रभु, किधौं बांह ये दीरध कीनी ॥
(४८)
करनौं कछु न करनतै कारज, तातै पानि प्रलंब करें हैं। रह्यौ न कछु पांयन तैं पैवो, ताही ते पद नाहिं टरे हैं । निरख चुके नैनन सब यातें नैन नासिका अनी' धरे हैं। कानन कहा सुनै यौं कानन, जोग लीन जिनराज खरे हैं ।
छप्पय
जयौ२ नाभिभूपालबाल, सुकुमाल सुलच्छन । जयौ स्वर्गपाताल पाल, गुनमाल प्रतच्छन३ ॥ . दृग विशाल वर भाल, लाल नख चरन विरज्जहिं। रूप रसाल मराल ६ चाल, सुन्दर लख लज्जहिं ॥ रिपुजालकाल रिसहेश हम, फंसे जन्म-जंवालदह । यातें निकाल बेहाल अति, भो दयाल दुख ढाल यह ॥
(५०)
सवैया चितवन वदन अमल चन्द्रोपम, तजि चिन्ता हिय होय अकामी । त्रिभुवन चंद पाप तप चंदन, नमत चरन चंद्रादिक नामी ॥ तिहु जग छई चंद्रिका -कीरति, चिहन चंद्र चिंतत शिवगामी । बन्दी चतुर चकोर चंद्रमा, चन्द्रवरन चंद्रप्रभ स्वामी ॥
१.दिनरात २.कायोत्सर्ग ३.निश्चल ४.छोड़ दी ५.कीचड़ ६.इन्द्रयों से ७.हाथ ८.लम्बा ९.नोंक १०.कानों से ११.जंगल १२.पैदा हुए १३.प्रत्यक्ष १४.आंख १५.विराज रहे हैं १६.हंस १७.कीचड़ १८. देखकर १९.निर्मल २०.चन्द्रमा के समान २७.चांदनी।
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