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________________ ( ११ ) (३१) राग - दीपचन्दी ईमन (यमन) स्वामीरूप अनूप विसाल, मन मेरे बसा || हरिगन चमरवृन्द ढोरत तहां, उज्जवल जेम' मराल' छत्रत्रय ऊपर राजत पुनि, सहित सुमुक्तामाल ' भागचन्द' ऐसे प्रभुजी को, नावत नित्य त्रिकाल (३२) महाकवि भूधरदास [पद ३२-५४] राग सोरठ टेक ॥ ॥ स्वामी ॥ १ ॥ स्वामी ॥ २ ॥ स्वामी ॥ ३ ॥ लगी लों नाभिनंदनसों ! जपत जेभ चकोर चकई, बन्द भरताको । लगी ॥ १ ॥ जाउ तन धन जाउ जोवन, प्रान जाउ न क्यों । (33) राग-काफी Jain Education International || एक प्रभु की भक्ति मेरे और देव अनेक सेये', ज्ञान खोयो गांठिको, धन रहों ज्यों की त्यों कुछ न पायो हौं करत कुबनिज ज्यों ३ ॥ लगी लों० ॥ पुत्र- मित्र- कलत्र ये सब सगे अपनी गों । नरक कूप उद्धरन श्री जिन, समझ 'भूधर 'यों ॥ ४ ॥ लगी लों. ॥ ॥ ११ सीमंधर स्वामी मैं चरन का चेरा ॥टेक॥ इस संसार असार में कोई, और न रच्छक' मेरा ॥ लख चौरासी जोनिमें मैं, फिरिफिरि कीनो तुम महिमा जानी नहीं प्रभु, देख्या दुःख घनेरा ॥ भाग उदय तैं पाइया अब, कीजे नाथ बेगि दया कर दीजिए मुझे, अविचल थान नाम लिये अध १३ ना कहैं, 'भूधर' चिन्ता क्या रही, ऐसा समरथ साहिब ज्यों ऊगे For Personal & Private Use Only ॥ २ ॥ लगी लों. ॥ । वसेरा ॥ भान १४ तेरा समीधर ॥ १ ॥ फेरा सीमंधर ॥ २॥ निवेरा १२ 1 o ॥ सीमं ॥ ३ ॥ अंधेरा । १. जिस प्रकार २. हंस ३. नवाते हैं ४. जाय ५. सेवा की ६. खोटा व्यापार ७. सेवक ८. रक्षक ९. बार-बार १०. भ्रमण ११. बहुत अधिक १२. निर्णय १३. पाप १४. सूर्य । सीमं ॥ ४ ॥ www.jainelibrary.org
SR No.003995
Book TitleAdhyatma Pad Parijat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanchedilal Jain, Tarachand Jain
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year1996
Total Pages306
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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