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________________ अन्य कुदेव तजै तजै सब मैंने, तिनतै निजगुन छीजे ॥ प्रभू. ॥ २ ॥ ‘भागचन्द' तुम शरन लियो है, अब निश्चल पद दीजे ॥ प्रभू, ॥ ३ ॥ . (२७) समझाओजी आज कोई करुनाधरन, आये थे ब्याहिन काज, वे तो भये हैं विरागी पशु दया लख-लख ॥ टेक ॥ विमल चरन पागी, करन बिजय त्यागी, उनने परम ज्ञानानंद चख-चख ॥ समझाओ. ॥ १ ॥ सुभग मुकति नारी, उनहिं लगी प्यारी हमसों नेह । कछु नहिं रख-रख ॥ समझाओ. ॥२॥ वे त्रिभुवन सामी, मदन रहित नामी, उनके अमर पूजे पद नख-नख ॥ समझाओ. ॥३॥ 'भागचन्द' मैं तो तलफत अति जैसे, जलसों तुरत न्यारी जक झख-झख१ ॥ समझाओ. ॥४॥ (२८) राग-दीपचन्दी परज नाथ भये ब्रह्मचारी, सखी घर में न रहूँगा ॥ टेक ॥ पाणिग्रहण२ काज प्रभु आये, सहित समाज अपारी । ततछिन ही वैराग भये हैं, पशु करुना उरधारी ॥ नाथ. ॥१॥ एक सहस्र३ अष्ट लच्छनजुत, वा छवि बलिहारी । ज्ञानानंद मगन निशिवासर, हमरी सुरत विसारी५ ॥ नाथ. ॥ २ ॥ मैं भी जिनदीक्षा धरि हों अब जाकर श्री गिरनारी । 'भागचन्द' इमि६ भनत सखिनसों, उग्रसेन की कुमारी ॥ नाथ. ॥ ३ ॥ (२९) गिरनारी पै ध्यान लगाया, चल सखि नेमिचन्द मुनिराया ॥ टेक ॥ संग भुजंग रंग उन लखि तजि शत्रू अनंग° भगाया । बाल ब्रह्मचारी व्रतधरी, शिवनारी चित लाया गिर. ॥ १ ॥ १. उनसे २. नष्ट होना ३. दयालु, ४. देख-देखकर ५. इन्द्रिय ६. सुन्दर ७. प्रेम ८. कामदेव ९. देवता १०. तड़फते है ११. मछली १२. विवाह १३. १००८ १४. याद १५. भुलादी १६. इस प्रकार १७. कहती है १८. राजुल १९. सर्प २०. कामदेव। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003995
Book TitleAdhyatma Pad Parijat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanchedilal Jain, Tarachand Jain
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year1996
Total Pages306
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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