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(८)
हरिगन' अरचत तुम पद' वारिज, परमेष्ठी भगवंत ॥ तुम गुन. ॥ ३ ॥ 'भागचंद' के घट' मंदिर में, वसहु सदा जयवंत ॥ तुम गुन. ॥ ४ ॥
(२४)
राग-सोरठ स्वामी जी तुम गुन अपरंपार, चन्द्रोज्ज्वल अविकार ॥ टेक ॥ जबै तुम गर्भ मांहि आये, तबै सब सुरगन' मिलि आये । रतन नगरी में बरसाये, अमित अमोघ सुढार ॥ स्वामी जी. ॥ १ ॥ जन्म प्रभु तुमने जब लीना, न्हवन मंदिरपै हरि कीना । भक्त करि सची सहित भीना, बोला जय जयकार ॥ स्वामी जी. ॥ २ ॥ जगत छनभंगुर जब जाना, भये तब नगनवृती बाना । स्तवन लौकांतिकसुर ठाना, त्याग राज को भार ॥ स्वामी जी. ॥ ३ ॥ घातिया प्रकृति जबै नासी, चराचर वस्तु सबै भासी । धर्म की वृष्टि करी खासी, केवल ज्ञान भंडार ॥ स्वामी जी. ॥ ४ ॥ अघाती प्रकृति सु विघयई, मुक्तिकान्ता तब ही पाई । निराकुल आनंद असहाई, तीन लोक सरदार ॥ स्वामी जी. ॥ ५ ॥ पार गनधर हूनहि पावै, कहां लगि° भागचंद गावै । तुम्हारे चरनांबुजर ध्यावै, भवसागर सो तार ॥ स्वामी जी. ॥६॥
(२५)
राग-धनाश्री प्रभू थांको२ लखि३ मम चित हरषायो ॥टेक ॥ सुन्दर चिन्तारतन अमोलक, रंक'४ पुरुष जिमि५ पायो॥ प्रभू. ॥ १ ॥ निर्मल रूप भयो अब मेरो, भक्ति नदीजल न्हायो ॥ प्रभू. ॥ २ ॥ भागचंद अब मम करतल'६ में, अविचल शिवथल आयो ॥ प्रभू. ॥ ३ ॥
(२६)
राग-मल्हार प्रभू, म्हांकी सुधि, करुना कर लीजे ॥टेक ।। मेरे इक अबलम्बन तुम ही, अब न विलम्ब करीजे ॥ प्रभू. ॥ १ ॥
१. इन्द्र २. चरण-कमल ३. हृदय में ४. जब ५. देवता ६. सुन्दर ७. इन्द्राणी ८. दिगम्बर भेष ९. मोक्षलक्ष्मी १०. कहां तक ११. चनण कमल १२. आपको १३. देखकर १४. गरीब १५. जिसप्रकार १६. हाथ में १७. मेरी।
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