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________________ (५) यां' सरीखा तीनलोक में, और न दूजा भास्या' जी ॥ जिनजी. ॥ १ ॥ अनुभव रसलैं सींचि सींचि कै, भव आलाप बुझास्यां जी । बुधजन को विकलप सब भाग्यौ, अनुक्रमतें शिव पास्यां जी ॥ जिनजी. ॥२॥ (१४) धनि चन्द्रप्रभ देव, ऐसी सुबुधि उपाई६ ॥ धनि. ॥ टेक ॥ जग में कठिन विराग दशा है, सो दरपन लखि तुरत उपाई ॥ धनि. ॥१॥ लौकान्तिक आये ततखिन ही चढ़ि सिविका वन ओर चलाई । भये नगन सब परिग्रह तजिकै नग चम्पातर लौंच २ लगाई ॥ धनि. ॥ २ ॥ महासेन धनिधनि लच्छमना, जिनके तुमसे सुत३ भये सांई ॥ बुधजन बन्दत पाप निकन्दत, ऐसी सुबुधि करो समुझाई ।। धनि. ॥ ३ ॥ (१५) मोहि१४ आपनाकर जान ऋषभ जिन। तेरा हो ॥ मोहि. ॥ टेक ॥ इस भवसागर मांहि फिरत हूं, करम रह्या करि घेरा हो। मोहि. ।। १ ।। तुम सा साहिब" और न मिलिया,६ सह्या भौत" भट" मेरा हो । मोहि.॥ २ ॥ 'बुधजन' अरज करै निशिवासर, राखौ चरननचेरा हो ॥ मोहि. ॥ ३ ॥ (१६) राग - सोरठ एकतालो चंदाप्रभु देव देख्या दुख भाग्यौ ॥ चंदा. टेक ॥ धन्य . दहाड़ो२१ मन्दिर आयौ, भाग अपूरब जाग्यौ ॥ चंदा. ॥ १॥ रह्यो भरम तब गति डोल्यो,२२ जनम-मरन दौं३ दाग्यौ । तुमको देखि अपनपौ देख्यौ, सुख समता रस पाग्यौ ॥ चन्दा. ॥ २ ॥ अब निरभय पद बेग हि पास्यों,२५ हरष हिये यौर लाग्यौ । चरन सेवा करै निरंतर, 'बुधजन' गुन अनुराग्यौ ॥ चंदा. ॥ ३ ॥ (१७) भज जिन चतुर्विंशति नाम ॥ भजि.॥ टेक ।। १. आपके जैसा २. भासित हुआ ३. बुझाऊंगा ४. पाऊंगा ५. सदुद्धि ६. उत्पन्न हुई ७. दर्पण ८. लौकान्तिक जाति के देवता ९. तत्काल १०. पालकी ११. चम्पा वृक्ष के नीचे १२. केशलोंच किये १३. पुत्र १४. मुझको १५. स्वामी, मालिक १६. मिला १७. बहुत १८. कर्म-योद्धाओं का काज १९. प्रार्थना २०. सेवक २१. समय २२. फिरा २३. दोनों २४. जलाया २५. पाऊंगा २६. इस प्रकार । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003995
Book TitleAdhyatma Pad Parijat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanchedilal Jain, Tarachand Jain
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year1996
Total Pages306
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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