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________________ (६) जे भजे ते उतरि भवदधि, लयौ' शिवसुख धाम ॥ भज. ॥ १ ॥ ऋषभ अजित संभव, अभिनंदन अभिराम । सुमति पदम सुपास चंद्रा, पुष्पदंत प्रनाम ॥ भज. ॥२॥ शीत श्रेयान् बासु पूजा, विमल नन्त सुठाम । धर्म शांति जु कुन्थु अरहा, मल्लि राखें माम' ॥ भज. ॥ ३ ॥ मुनिसुव्रत नमि नमिनाथा, पास सन्मति स्वाम राखि निश्चयजपौ बुधजन, पुरै सबकी काम ॥ भज. ॥४॥ (१८) हो जी म्हें निशिदिन ध्यावां ले ले वलहारियां ॥ होजी. ॥ टेक ॥ लोकालोक निहारक स्वामी, दी है नैन हमारिया ॥ होजी. ॥ १ ॥ षट चालीसौं गुनके धारक, दोष अठारह टालियां । 'बुधजन' शरनै आयो थांके, थे शरणागत पालियां । होजी. ॥ २ ॥ राग - कालिंगड़ो आज मनरी १ बनी१२ छै जिनराज ॥ आज. ॥ टेक ॥ थांको१३ ही सुमरन थांको ही पूजन थांको तत्व विचार ॥ आज. ॥ १ ॥ थांके विछुड़े अति दुख पायौ, मोपै५ कह्यो न जाय । अब सनमुख तुम नयनौं निरखे, धन्य मनुष१६ परजाय ॥ आज. ॥ २ ॥ आजहिं पातक नास्यौ८ मेरौ, ऊतरस्यौं भवपार । यह प्रतीत° 'बुधजन' उर आई, लेस्यौं' शिवसुखसार ॥ आज. ॥ ३ ॥ (२०) आयौ जी प्रभु थांपै,२२ करमा २३ पीड़यौ आयौ ॥ आयौ. ॥ टेक ॥ जे देखे तेई करमनि बश, तुम ही करम न सायौ ॥ आयौ. ॥१॥ सहज स्वभाव नीर शीतलको, अगनिकषाय२५ तपायौ । सहे कुलाहल२६ अनतकाल मैं, नरक निगोद डुलायौ ॥ आयौ. ॥ २ ॥ १. प्राप्त किया २. मुझे ३. पूरा करो ४. इच्छा ५. देखने वाला, दिखाई देना ६. छयालीस ४६ ७. टालकर ८. आपकी ९. आप १०. पाला ११. मन की १२. बन आई है १३. आपकी ही १४. बिछुड़ने पर १५. मुझसे १६. मनुष्य पर्याय १७. पाप १८. नष्ट हो गये १९. उतरूंगा २०. विश्वास २१. लूंगा २२. आपके पास २३. कमों का पीड़ित २४. जिन्होंने देखा २५. कषाय रूपी अग्नि २६. कोलाहल (हल्ला)। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003995
Book TitleAdhyatma Pad Parijat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanchedilal Jain, Tarachand Jain
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year1996
Total Pages306
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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