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________________ (४) (१०) राग - गारो कान्हरो थांका' गुण गांस्यां' जी आदि जिनंदा ॥ थांका. ॥ टेक ॥ थांका वचन सुण्यां प्रभु मून, म्हारा निज गुण भास्याजी ॥ आदि. ॥ १॥ . म्हांका सुमन कमल में निशिदिन, थांका चरन वसास्यां जी ॥ आदि. ॥ २ ॥ याही मनै लगन लगी छै, सुख छो दुःख नसास्यां जी ॥ आदि. ॥ ३ ॥ बुधजन हरष हिये° अधिकाई शिवपुरवासा१ पास्यां१२ जी ॥ आदि. ॥ ४ ॥ (११) राग - कनड़ी भला होगा, तरो यों ही, जिनगुन पल न भुलाय हो ॥ भला. ॥ टेक ॥ दुःख मेटनसुख दैन सदा ही, नभिकै मन बच काय हो ॥ भला. ॥ १ ॥ शकी५ चक्री६ इन्द्र फनिंद्र सु, बरन करत थकाय हो । केवलज्ञानी त्रिभुवन स्वामी, ताकौं निशिदिन ध्याय हो॥ भला. ॥ २॥ आवागमन सुरहित निरंजन, परमातम जिनराय हो । 'बुधजन' विधितै पूजि चरन जिन, भव भव में सुखदाय हो ॥ भला. ॥३॥ राग - कनड़ी एकतालो त्रिभुवन नाथ हमारो हो, जी ये तो जगत उजियारो। त्रिभुवन. । टेक । परमौदारिक९ देह के मांही, परमातम हितकारौ ॥ त्रिभुवन. ॥ १॥ सहजै ही जगमांहि रह्यो छै,२० दुष्ट मिथ्याल२१ अंधारौ । ताको हरन२२ करन समकित२३ रवि, केवलज्ञान निहारौ २४ ॥ त्रिभुवन. ॥ २ ॥ त्रिविध शुद्ध भवि' इनकौ पूजौ, नाना२६ भक्ति उचारौ । क्रमकाटि२७ बुधजन शिवलै हो, तजि संसार दुखारौ२८ ॥ त्रिभुवन. ॥ ३ ॥ (१३) थांका गुन गास्यांजी जिनजी राज, थांका दरसन” अघ नास्या ॥ थांका. ॥ टेक ॥ १. आपका २. गाऊंगा ३. सुनने से ४. मैंने ५. मेरा ६. प्रकट हो गया ७. हमारा ८. बसाऊंगा ९. नसाऊंगा १०. हृदय में ११.मोक्ष निवास १२. पाऊंगा १३.पार हो १४ नमस्कार करके १५ इन्ट चक्रवर्ती १७ = बिना १८. विधि पूर्वक १९. परम औदारिक शरीर में २०. है २१. मिथ्यात्व २२. दूर करने को २३. सम्यक्त्व रूपी सूर्य २४. देखो २५. भव्य जीव २६. अनेक प्रकार से २७. कर्म काटकर २८. दुःख २९. आपका ३०. गाऊंगा। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003995
Book TitleAdhyatma Pad Parijat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanchedilal Jain, Tarachand Jain
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year1996
Total Pages306
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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