SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 53
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (३) (७) राग खंमाच सुनियो हो प्रभु आदि - जिनंदा, दुख पावत है बंदा' । सुनियो. ॥ टेक ॥ खोसिरे ज्ञान धन कीनो जिन्दा (?) डारि ठगौरी धंदा। सुनियो. ॥ १ ॥ कर्म दुष्ट मेरे पीछे लाग्यो,' तुम हो कर्म निकंदा । सुनियो. ॥ २ ॥ बुधजन अरज करत है साहिब, काटि कर्म के फन्दा । सुनियो. ॥ ३ ॥ (८) राग - सारंग हम शरन गयो जिन चरन को ॥ हम. ॥ टेक ॥ अब औरन की मान न मेरे, डरहु रह्यो नहि मरन को हम. ॥ १ ॥ भरम १ विनाशन २ तत्व प्रकाशन, भवदधि१३ तारन तरन को । सुरपति नरपति ध्यान धरत वर, करि निश्चय दुख हरन को ॥ हम. ।। २ ।। या प्रसाद ज्ञायक'५ निज मान्यौ, जान्यौ तन जड़६ परन को । निश्चय" सिध सो पै कषायतै, पात्र भयो दुख भरन को ॥ हम. ॥ ३ ॥ प्रभु बिन और नहीं या जगमैं, मेरे हितके करन को । बुधजन की अरदास यही है, हर संकट भव° फिरन को ॥ हम. ॥ ४ ॥ राग - खंमाच छबि जिनराई राजै२१ छै ॥छबि. ॥टेक ॥ तरु अशोकतर सिंहासन पै, बैठे धुनि२२ घन गाजै छै । छबि. ॥ १ ॥ चमर छत्र भामंडल दुति पै, कोटि भानदुति२३ लाजै२४ छ । पुष्पवृष्टि सुर नभतै दुन्दुभि, मधुर मधुर सुर बाजै छै॥ छबि. ॥ २ ॥ सुर नर मुनि मिलि पूजन आवै, निरखत५ मनड़ो२६ छाजै छै । तीन काल उपदेश होत है, भवि बुधजन हित काजै छै ॥ छबि. ॥ ३ ॥ १. जिनेन्द्र २. भक्त ३. छीनकर ४. ठग का काम ५. लगा है ६. नष्ट करने वाले ७. प्रार्थना ८. जाल ९. ग्रहण किया १०. दूसरे की ११. भ्रम १२. नाश करने वाले १३. संसार सागर १४. अच्छी तरह १५. स्वयं ज्ञायक स्वरूप १६. शरीर जड़ स्वरूप १७. निश्चय से सिद्ध १८. कषायों से १९. प्रार्थना २०. संसार भ्रमण २१. सुशोभित होता है २२. मेघ की गर्जना २३. सूर्य की कांति २४. लज्जित होता है २५. देखने से २६. मन । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003995
Book TitleAdhyatma Pad Parijat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanchedilal Jain, Tarachand Jain
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year1996
Total Pages306
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy