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" न मानत यह जिय निपट अनारी। कुमति कुनारि संग रति मानत, सुमति सुनारि बिसारि।।" (पद०३२४) तथा
"मान लो या सिख मोरी झुकै मति भोगन ओरी।।" (पद०३१८) संसार की असारता
प्रस्तुत पदों में संसार की असारता का बहुत ही सजीव चित्रण हुआ है। उक्त तथ्य से सम्बन्धित सभी पद मनोहर, सरस और रोचक बन पड़े हैं। संसार की वास्तविकता का चित्रण दृष्टान्तों के माध्यम से इस प्रकार किया गया है कि वस्तु का चित्र मूर्तिमान होकर नेत्रों के समक्ष उपस्थित हो जाता है। उनकी चुभती हुई उक्तियाँ सीधे हृदय में प्रवेश कर जीवन की अस्थिरता, नश्वरता और अपूर्णता का अनुभव कराती है
"जगत में कोई नहीं मेरा ।" (पद०५४८) संसार रात्रि के स्वप्न की भाँति क्षणिक है। यह शरीर, यौवन और धन सभी पानी के बुलबुले की तरह क्षण भर में विलीन हो जानेवाले हैं
"भगवन्त भजन क्यों भूला रे, यह संसार रैन का सुपना तन धन वारि बबूला रे।।" (पद० ५३४)
संसार के सभी रिश्ते-नाते भ्रम-जाल हैं, एक आत्मा ही सत्य है। संसार के खोखलेपन का विश्लेषण करता हुआ कवि कहता है
"अरे जिया जग धोखे की टाटी।।" (पद० ३२२) कवि संसार की वास्तविकता से परिचय कराते हुए कहता है
__ जीव तू भ्रमत सदैव अकेला।। (पद० २७६) जीवन का शाश्वत सत्य मृत्यु है और मृत्यु सदैव हमारे सिर पर मँडराती रहती है। उसका हौआ हर क्षण सभी को भयभीत करता रहता है अत: प्रत्येक क्षण इससे सतर्क रहकर मानव को आत्म-कल्याण के कार्य करके अपना जन्म सार्थक कर लेना चाहिए।
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