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(५४६)
राग-रामकली हम न किसी के कोई न हमारा, झूठा है जग का व्योहार ॥ टेक ॥ तन सम्बन्धी सब परिवारा, सो तन हमने जाना न्यारा ॥१॥ पुन्य उदय सुख का बढ़वारा, पाप उदय दुख होत अपारा । पाप पुन्य दोऊ संसारा, मैं सब देखन हारा ॥ हम. ॥ २ ॥ मैं तहुँ जग तिहुँ काल अकेला, पर संजोग भयो' बहुमेला थित पूरी करी खिर खिर जांही, मेरे हर्ष शोक कछु नाहीं ॥ ३ ॥ राग भावतें सज्जन माने, दोष भावते दुर्जन जानैं । राग दोष दोऊ मम नाहीं, 'द्यानत' मैं चेतन पद माहीं ॥ ४ ॥
कवि दौलतराम
(५४७) मत राचो धीधारी , भव रंभ थंम सम जानके ॥ मत. ॥ टेक ॥ इन्द्र जाल को ख्याल मोह ठग, विभ्रम पास' पसारी । चहुँगति विपतमयी जामें जन, भ्रमत भरत दुख भारी ॥१॥ रामा२, मां वांमा३, सुत, पितु, सुता श्वसा४ अवतारी । को अचंभ जहाँ आपके पुत्र दशा विसतारी ॥२॥ घोर नरक दुख ओर न छोर, न लेश न सुख विस्तारी। सुरनर प्रचुर विषय जुर५ जारे, को सुखिया संसारी ॥ ३ ॥ मंडल' है आखंडल" छिन में, नृप कृमि सघन भिखारी । जासुत८ विरहमरी है बाघिन ता सुत - देह विदारी ॥४॥ शिशु न हिताहित ज्ञान तरुण उर, मदन दहन परजारी । बृद्ध भये विकलांगी थाये, कौन दशा सुखकारी ॥ ५ ॥ यौं असार लख छार२२ भव्य झट, भये मोख२३ मगचारी । यातें होक उदास 'दौल' अब, भज निज पति जगतारी ॥६॥
१.व्यवहार, बर्ताव २.अलग ३.वृद्धि ४.देखने वाला ५.हुआ ६.स्थिति ७.लीन हुआ ८.बुद्धिमान ९.संसार १०.केले का धंभ ११.जाल १२.स्वी १३.स्त्री १४.बहिन १५.ज्वर १६.राजा १७.इन्द्र १८.उस पुत्र के लिए १९.कामदेव २०.जला दिया २१.हुये २२.छोड़ २३.मोक्ष मार्ग में चलने वाला।
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