________________
( २०२ )
(५४३)
रूप कौ खोज' रह्यो तरू ज्यों तुषार दह्यौ,
भयौ पतझर किधौं रही डार
दूबरी'
कूबरी भई है कटि ऊबरी इतेक आयु आयु जोबनतै" बिदा लीनी जरा' ने
सेर" - मांहि
सूनी सी ।
भई है देह,
Jain Education International
पूनी जुहार कीनी,
सबै वाम ऊनी सी ।
सी ॥
हानी भई सुधि बुधि तेज घट्यो ताव घट्यौ जीतव' को चाव घट्यो, और सब घट्यो एक तिस्ना" दिन दूनी सी ॥
(५४४)
अहो इन आपने अभाग" उदै नाहि जानी, वीतराग-वानी सार दयारस - भीनी है । जोबन के जारे थिर जंगम अनेक जीव, जानि जे सताये कछु करुना न कीनी ॥ तेई अल४ जीव रास आ परलोक पास, लेंगे बैर देंगे दुख भाई ना नवीनो है । उन्ही के भयकौ भरोसो जान कांपत है, याही डर डाकरानै " लाठी हाथ लीनी ॥
कवि द्यानतराय
(५४५)
॥
राग
हार ॥ मन. ॥ २ ॥
मन ! मेरे राग भाव निवार १६ || टेक राग चिक्कन१७ तैं लगत है कर्मधलि अपार ॥ मन. ॥ १ ॥ आश्रव मूल" है वैराग्य संवर धार I जिन न जान्यो भेद यह वह गयो नरभव" दान पूजा शील जप तप भा विविध २० राग बिन शिव सुख करत है राग तैं संसार ॥ मन. ॥ ३ ॥ वीतराग कहा कियो, यह बात सोइ कर सुखहेत 'द्यानत',
प्रकार
1
प्रगट निहार २१
शुद्ध
अनुभव सार ॥ मन. 118 11
१. पता २. तुषार ने जला दिया ३. पतझड़ ४. कुबड़ी ५. दुबली ६. सेर में पूनी की तरह ७. जबानी ने विदा ली ८. बुढापे ने जुहारू की अर्थात् आया ९. जीने की इच्छा १०. तृष्णा ११. दुर्भाग्य १२. जबानी के जोश में १३. जिनको सताया १४. सम्पूर्ण जीव राशि १५. बूढे ने लाठी पकड़ी है १६. दूर कर १७. चिकनाहट १८. कारण १९. मनुष्य भव २०. अनेक प्रकार हुआ २१. स्पष्ट देखो ।
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org