________________
( १८२ )
मानुज देह लही दुलही', सुधरी उधरी सतसंगति पाई ॥ जे करनी वरनी करनी नहिं, ते समझी करनी समझाई ॥ यों शुभ थान जग्यो उर ज्ञान, विषै विषपान तृषा न बुझाई || पारस पाय सुधारस 'भूधर' भीख के मांहि सुलाज' न आई
||
(४९४)
बालपनै न सँभार सक्यौ कछू, जानत जाहिं हिताहित ही को यौवन वैस' बसी बनता उर, कै नित राग रह्यो लक्षमी को
11
' दोई विगोई दयो नर, डारत क्यौं नरकै निज जी को । आये हैं से" अज शठ चेत गई सुगई अब राख रही को
11
(४९५)
को ११
सार नर देह सब कारज यह तौ विख्यात बात वेदन मैं
तामैं तरुनाई ३ धर्म सेये तब विषै, मोहमद भोये १६
जैसे
जोग
बँचै १२
सेवन की
मधु
माखी १५ रामाहित' रामाहित१७ रोज रोये
यौं ही दिन खोये अरे सुन बौरे १९ सावधान हो रे नरं नरक सौं
अब
Jain Education International
समै१४ भाई
धन
खाय को दौ जिम १८ मैच है
येह
रचै हैं !
आये सीस धौरे २० बचे है
है ॥
उर अंतर तगाहित
अौं ।
(४९६)
.२४
- २५
बाय२१ लगी की बलाय लगी, मदमत्त २ भयौ नर भूलत त्यौं ही । बृद्ध भयै न भजै२३ भगवान विषै-विष सीस भयौ बगुला सम सेत रह्यो मानुष २८ भौ मुकताफलहार २९
खात अघात न क्यों ही
२६
२७
गवाँर
अरे. ॥ १ ॥ अरे. ॥ २ ॥
अरे. ॥ ३॥ ॥ ४ ॥
अरे
For Personal & Private Use Only
श्याम अजौं ही ।
तोरत
यौं ही ॥
१.दुर्लभ २.कही ३.वह करनी नहीं है ४. भिक्षा में ५. शर्म ६. उम्र ७.स्त्री ८.बालपन और यौवन ९.नष्ट कर दिये १०. अवसर, मौका ११. कार्य के योग्य १२. बढ़ा है १३. जवानी १४. समय १५. मधुमक्खी १६. भूल गये १७. धन और स्त्री के लिए १८. जिस प्रकार १९. बावले २०. सफेद २१. वायु, हवा २२. मतवाला २३. भजन करना २४. विषय रूपी विष २५ . तृप्त नहीं होता २६. सिर वगुला की तरह सफेद हो गया २७ हृदय आज भी काला है २८. मनुष्य भव २९. मोतियों का हार ३०. धागा के लिए ।
www.jainelibrary.org