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________________ (१८१) (४९१) कवि भूधरदास ऐसो श्रावक कुल तुम पाय व्रथा क्यों खोवत हो ॥ टेक ॥ कठिन कठिन कर नरभव पाई, तुम लेखी' आसान । धर्म विसारि विषय में राचौ मानी न गुरू की आन || वृथा. ॥ १ ॥ चक्री एक मतंगज' पायो, तापर' ईधन ढोयो । बिना विवेक बिना मति ही को, पाय सुधा' पग धोये ॥ वृथा. ॥ २ ॥ काहू शठ चिन्तामणि पायो, मरम न जानो ताय । वायस देखि उदधि में फैंक्यो, फिर पीछे पछताय ॥ वृथा. ॥ ३ ।। सात विसन आठो मद त्यागों, करुना चित्त विचारो। तीन रतन हिरदै में धारो, आवागमन निवारो ॥ वृथा. ॥ ४ ॥ 'भूधरदास' कहत भविजनसों, चेतन अबतो. सम्हरो। प्रभु को नाम तरण तारण जपि कर्मफन्द निरवारो ॥ वृथा. ॥ ५ ॥ राग-सोरठ (४९२) भलो चेत्यो वीर नर तू भलो चेत्यो वीर ॥ टेक ॥ समुझि प्रभु के शरण आयो, मिल्यो ज्ञान बजीर ॥ तू. ॥ १ ॥ जगत में यह जन्म हीरा, फिर कहां थो४ धीर । भली वार विचार छाड्यो, कुमति५ कामिनि सीर ॥ तू. ॥ २ ॥ धन्य धन्य दयाल श्रीगुरू सुमिरि गुण गंभीर । नरक पर ६ राखि लीनो, बहुत कीनी - भीर ॥ तू. ॥ ३ ॥ भक्ति नौका लही भागनि, किलक ९ भवदधि नीर ।। ढील° अब क्यों करत, 'भूधर' पहुँच पैली तीर ॥ तू. ॥ ४ ॥ राग-ख्याल (४९३) अरे ! हां चेतो रे भाई ॥ टेक ॥ १.आसन समाया २.विषयों में लीन रहा ३.हाथी ४.उस पर ५.अमृत से पैर धोये ६.उसका ७.कौआ ८.समुद्र में ९.सात व्यसन १०.रत्नत्रय ११.जपकर १२.सावधान हुआ १३.ज्ञानरूपी मंत्री मिला १४.था १५.कुबुद्धि रूपी स्त्री का साथी १६.गिरने से १७.बचा लिया १८.भाग्य से १९.कितना २०.शिथिलता २१.पहले। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003995
Book TitleAdhyatma Pad Parijat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanchedilal Jain, Tarachand Jain
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year1996
Total Pages306
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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