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________________ (१८३ ) (४९७) से जाकौं इन्द्र चाहैं अहमिंद्र जीव मुक्त माहैं जाय भौमल ऐसौ नरजन्म पाय विषैरे विष जैसे काच सांटें मूढ़ मानक' माया नदी बूड़ भींजा काया बल तेज छीजा गमावै है अब कहा बनि आवै है ॥ नीचे नैन किये डोले. बदन दुरावै" है आया पन तीजा' तानै निज सीस ढोलै कहावदि बोलै बृद्ध उमाहै' जासौ, वहावै है खाय खोयौ, (४९८) महाकवि द्यानतराय नहिं ऐसा जनम बार बार ॥ टेक ॥ कठिन" कठिन लह्यो मनुज भव, विषय भजि मतिहार ॥ नहिं ॥ १ ॥ पाय चिन्तामन रतन शठ १४, छिपत उदधि मँझा अंध हाथ बटेर आई तजत ताहि गँवार ॥ नहिं. ॥ २ ॥ कबहुँ नरक तिरजंच कबहुं कबहुं सुरगविहार । जगतमाहिं चिरकाल भमियो", दुलभ नर अवतार ॥ नहीं. ॥ ३ ॥ पाय अमृत पांये १६ धोवै, कहत सुगुरू पुकार । तजो विषय कषाय 'द्यानत', ज्यों लहो भवपार ॥ नहिं ॥ ४ ॥ (४९९) नहिं वृथा गमावे, सहसा नहि पावे मनुज जन्म को ॥ टेक मानुज जन्म निरोगी काया, उर विवेक चतुराई धर्म अधर्म पिछान किये बिन काम कछू नहि आई जी जिनवर धर्म दिगम्बर ताको, यदि उर धरनो भाई तो आगम अनुसार देव गुरू तत्व परखि" सुखदाई 11 Jain Education International १. उमंगित होना २. भव का मैल ३. विषय रूपी विष ४. चिपकाता है ५. मणि खो देता है ६. भीग गया ७.छय हो गया ८. बुढ़ापा ९. व्यंग्य वाण १०. छिपाता है ११. मुश्किल से १२. विषयों का सेवन करे १३. बुद्धि भ्रष्ट होना १४. मूर्ख १५. भटका १६. पैर धोता है १७. पहचान १८. परख । For Personal & Private Use Only ॥ नहिं ॥ १ ॥ 1 ॥ नहिं ॥ २ ॥ www.jainelibrary.org
SR No.003995
Book TitleAdhyatma Pad Parijat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanchedilal Jain, Tarachand Jain
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year1996
Total Pages306
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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