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________________ (६) से काव्य परिपूर्ण होता है । उक्त पदों में रागात्मक - तत्त्व अपनी पूर्ण तन्मयता और हृदय-स्पर्शिता से साकार हो उठा है। उनमें एक साथ तन्मयता, सहज सुकोमलता, सरलता, विचित्रता और सौन्दर्य के दर्शन होते हैं। सीधी सादी सरल भाषा में भक्त की करुण पुकार हृदय को रससिक्त कर डालती है - दुविधा कब जैहे मन की । कब रुचि सौ पीवें दुगचातक, बूँद अखय पद धन की ।। " (पद० ५८७) कवि ज्योति के निम्न पद में अनुभूति और कल्पना का समुचित सन्तुलन देखने योग्य है— 44 " चेतन अँखियाँ खोलो नर । (पद० ४३८) पदों का विषयानुरूप वर्गीकरण जैन कवियों के पदों की प्रेरणा का स्रोत जिनेन्द्र-भक्ति या शुद्ध जीवात्मा है । कवि प्रमुखतः पहले अपनी जीवात्मा को सन्मार्ग में लगाने के लिए पदों की संरचना करते हैं। तत्पश्चात् उनकी भावना यह भी है कि सांसारिक प्राणी भी उनका अनुसरण कर अपना आत्मकल्याण कर सकें। जैनदर्शन में भक्ति का स्वरूप सगुन - निर्गुण, दास, सख्य और माधुर्य से भिन्न है। अतः कोई भी साधक अपनी चाटुकारिता - पूर्ण प्रशंसात्मक या निन्दात्मक स्तुतियों द्वारा वीतरागी प्रभु को प्रसन्न या अप्रसन्न नहीं कर सकता। बल्कि उनके गुणों का स्मरण कर, स्वयं अपने में उन्हीं गुणों को विकसित करने की प्ररेणा प्राप्त करता है और कर्म - बन्धन से मुक्त होता है। उसकी भक्ति का एक ही लक्ष्य रहता है— आत्मा को कर्म - बन्धन से मुक्त कराकर शुद्ध, बुद्ध परमात्मा की श्रेणी में पहुँचा देना । इन पदों के चिन्तन और मनन से एक प्रकार की अपूर्व शान्ति की प्राप्ति होती है और आत्मिक सुख का अनुभव होता है। वे भक्ति-भावना पर आधारित होकर भी अपने में अनेक विशेषताओं को समाहित किए हुए हैं। यद्यपि उनके विषय और भावों की दृष्टि से उन्हें सामान्यतः पूर्वोक्त २० श्रेणियों में विभक्त किया जा सकता है किन्तु अध्ययन की सुविधा की दृष्टि से उनका प्रधान रूप से निम्न प्रकार वर्गीकरण किया जा सकता है (१) भक्तिपरक पद (२) आध्यात्मिक पद (३) रहस्यात्मक पद Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003995
Book TitleAdhyatma Pad Parijat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanchedilal Jain, Tarachand Jain
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year1996
Total Pages306
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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