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(१३४) हम कर्मन” भवदुख दुखिया तुम दुख के प्रतिपाला' ॥ ओर. ॥१॥ कर्मन तुल्य नहीं दुख दाता तुम सम नहि रखवाला ॥ ओर. ॥ २ ॥ तुम तो दीन अनेक उधारे' कौन कहै तैं सारा ॥ओर. ॥ ३ ॥ कर्म अरी' को वेगि हटाऊं ऐसी कर प्रभु म्हारा ॥ओर ॥ ४ ॥ 'बुध महाचन्द्र' चरण युग चर्चे जाचत है शिवमाला ॥ओर. ॥ ५ ॥
_ (३८१) अरज मोरी एक मानू जी', हो जिन जी चमत्कारि महाराज ॥ टेक ॥ तुम तो शिवपुर बास कीनू जी, हो जिन जी हम डूबै भवमाहि, तारि मोहि दीन जानूं जी॥ हो जिन जी. ॥ १ ॥ तुम निजरूपी व्हे रहे हो राज हो जिन जी, हम पर परणति लीन करो निज रूप बानू जी॥ हो जिन जी. ॥ २ ॥ तुम तो कर्म विनाशिये जी, राज हो प्रभुजी, हमको करम दुख देत, जन्म जन्मान्तरानो जी॥ हो जिन जी. ॥३॥ भव भव में तुम चरण की हो राज हो जिन जी सेवा 'बुध महाचन्द्र' मांगत सो मिलानूं' जी ॥ हो जिन जी.॥ ४ ॥
कविवर भागचंद
(३८२) मो सम२ कौन कुटिल ३ खल कामी। तुम सम कलिमल५ दलन न नामी ॥ टेक ॥ हिंसक झूठ बाद मति चितरत', परधन हर पर वनितागामी । लोभित चित्त वित्त नित चाहत धावन दश दिश करत न स्वामी ॥ १ ॥ रागी देव बहुत हम जांचे रांचे नहि तुम सांचे स्वामी बांच° श्रुत कामादिक पोषक, सेये कुगुरू सहित धनधामी ॥ २ ॥ भाग उदयसे मैं प्रभु पाये, वीतराग तुम अन्तर्जामी । तुम धुनि२२ सुनि परजय में, परगुण जानै निजगुणचित विसरामी२३ ॥ ३ ॥ तुमने पशु पक्षी सब सा तारे अंजन चोर सुनामी ।
१.रक्षा करने वाले २.उद्धार किया ३.कर्मशत्रु ४.पूजता हूं ५.मांगता हूं ६.मानो जी ७.किया जी ८.जानो जी ९.बना १०.अनेक जन्मों में ११.मिलानजी १२.मेरे समान १३.कपटी १४.दुष्ट १५.पापों को नष्ट करने वाले १६.लीक १७.परस्त्री गामी १८.हमेशा धन चाहते हैं १९.लीन होना २०.पढे २१.धन और धाम (सत्कार) वाले २२.वाणी सुनकर २३.आत्म स्वरूप में लीन।
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