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________________ (१३३) परमें त्याग अपनपो निज में, लाग न कबहू कीजिए । कर्म कर्मफल मांहि न राचत ज्ञान सुधारस पीजिए ॥ प्रभु. ॥ १ ॥ सम्यग्दर्शन ज्ञान चरननिधि, ताकी प्राप्त करीजिए । मुझ कारज के तुम बड़ कारन अरज 'दौल' की लीजिए ॥ प्रभु. ॥ २ ॥ (३७८) हो तुम त्रिभुवन तारी हो जिनजी मो भवजलधि क्यों न तारन हो ॥ टेक ॥ अंजन किया निरंजन तारौं अधम उधार विरद धारन हो । हरि बराह कर्कट झट तार, मेरी बेर डील पारत हो ॥ हो तुम. ॥ १ ॥ यौं बहु अधम उधारे तुम तो, मैं कहा' अधम न मुहिर टारत हो । तुम को करनो परत न कछु शिव, पथ लगाय भव्यनि तारत हो ॥हो तुम. ॥ २ ॥ तुम छवि निरखत सहज टरै अघ, गुण चिंतत विधिरज झारत हो । 'दौल' न और चहै मो दीजै, जैसी आप भावना रत" हो ॥ हो तुम. ॥ ३ ॥ (३७९) तुम सुनियो श्री जिननाथ, अरज इक मेरी जी ॥ तुम. ॥ टेक ॥ तुम विन होत'६ जगत उपकारी वसुकर्मन मोहि किया दुखारी ज्ञानादिक निधि हरी हमारी, द्यावो" सों मम फेरी जी॥ तुम. ॥ १ ॥ मैं निज" भूल तिनहि संग लाग्यो तिन कृत करन विषय रस पाग्यौ । ताते° जन्म जरा-दब-दाग्यौ, कर समता समनेकी जी ॥ तुम. ॥ २ ॥ वे अनेक प्रभु मैं जु अकेला, चहुंगति विपति मांहि मोहि पेला ।। भाग जगे तुमसों भयो मेला, तुम हो न्याय२३ निवेरी जी॥ तुम. ॥ ३ ॥ तुम दयाल वेहाल हमारो, जगतपाल निज विरद समारो । ढील४ न कीजै वेग२५ निवारो "दौलतनी' भवफेरी जी॥ तुम. ॥ ४ ॥ कवि महाचन्द्र (३८०) ओर२६ निहारो मोरे दीन दयाला ॥ ओर. ॥ टेर ॥ १.क्षय करना २.लीन होना ३.उसकी ४.कार्य ५.कारण ६.मुझे ७.प्रशंसा ८.सिंह ९.सूअर १०.केंकड़ा ११.मैं क्या नीच हूं १२.मुझे क्यों पार नही लगाते १३.पाप १४.कर्ममल दूर करना १५.लीन होना १६.अकारण १७.वापिस दिला दो १८.अपनी गल्ती से १९.विषयों के रस में लीन हो गया २०.इसलिये जन्म जरा रूपी आग में जला २१.निकट २२.धकेला २३.फैसला करने वाले २४.ढिलाई न करें २५.जल्दी से २६.तरफ २७.देखो। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003995
Book TitleAdhyatma Pad Parijat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanchedilal Jain, Tarachand Jain
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year1996
Total Pages306
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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