SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 164
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (११४) जान बूझ के अन्ध बने हैं आंखन बांधी पाटी ।। अरे. ॥ २ ॥ निकल जायेंगे प्राण छिनक में पड़ी रहैगी माटी ॥ अरे. ॥ ३ ॥ 'दौलत राम' समझ मन अपने, दिल की खोल कपाटी' ॥ अरे. ॥ ४ ॥ (३२३) हे नर भ्रमनींद क्यों न छोडत दुख दाई । सेवत चिरकाल सोंज' आपनी ठगाई ॥ हे नर. ॥ टेक ॥ मूरख अघ कर्म कहा भेदै नहिं भर्म लहा, लागै दुख ज्वाल की न, देह की तताई ॥ हे नर. ॥१॥ जम के रव बाजते, सुभैख अति गाजते° अनेक प्रान त्यागते, सुनै कहा न भाई ॥ हे नर. ॥ २ ॥ पर को अपनाय आप रूप को भुलाय हाय, करन' बिषय दारु२ जार, चाहदौं २ बढ़ाई ॥ हे नर. ॥ ३ ॥ अब सुन जिन बान राग द्वेष को जघान ४ मोक्ष रूप निज पिछान, ५ 'दौल' भज विराग ताई ॥ हे नर. ॥४॥ (३२४) न मानत यह जिय निपट अनारी, ६ सिख देत सुगुरु हितकारी ॥ न मानत. ॥ टेक ॥ कुमति कुनारि" संग रति मानत, सुमति सुनारि" विसारी ॥ न मानत. ॥ १ ॥ नर परजाय सुरेश चहैं सो, तजि विष विषय विगारी । त्याग अनाकुल ज्ञान चाह पर आकुलता विसतारी ॥ न मानत. ॥ २ ॥ अपना भूल आप समता निधि भव दुख भरत भिखारी पर द्रव्यन की परनति को शठ१ वृथा बनत करतारी२॥ न मानत. ॥ ३ ॥ जिस कषाय दव२३ जरत तहाँ अभिलाष छटा घृत डारी । दुख सौं डरै करै दुखकारन-तें नित प्रीतिकरारी ॥ न मानत. ॥ ४ ॥ अति दुर्लभ जिन वैन श्रवनकरी संशय मोह निवारी ।। 'दौल' स्वपर हित अहित जानके होवहु शिवमगचारी ॥ न मानत. ॥ ४ ॥ १.पट्टी बांध ली २.मिट्टी पड़ी रहेगी ३.किवाड़ ४. छोड़ता ५. उपकरण, सामग्री ६. कर्म क्यों नहीं भेदता ७. प्रम लिया ८. गरमी ९. आवाज १०. गरजते हैं ११. इन्द्रियों के विषय १२. लकड़ी जलाकर १३. इच्छा को १४. मारो १५. पहचानो १६. अनाड़ी १७. कुबुद्धि रूप कुनारी १८. सदुद्धि रूपी सुनारी १९. इन्द्र २०. बिगाड़ा २१. मूर्ख २२. कर्ता २३. आग २४. घी डाला। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003995
Book TitleAdhyatma Pad Parijat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanchedilal Jain, Tarachand Jain
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year1996
Total Pages306
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy