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________________ ( ११३ ) अमल अखण्ड अतुल अविनाशी आतम गुन नहि गाये ॥ हम. ॥ २ ॥ यह बहुभूल भई हमरी फिर कहा काज' पछताये । 'दौल' तजो अज हूं विषयन को सतगुरु बचन सुनायें ॥ हम. ॥ ३ ॥ (३२०) छांडि दे या बुधि भोरी', वृथा तन से रति जोरी ॥ टेक ॥ यह पर है न रहै थिर पोषत, सकल कुमल की झोरी" । यासों ममता कर अनादितैं बंधो कर्म की डोरी, सह्रै दुख जलधि हिलौरी || छांडि दे या बुधि भोरी ॥ वृथा. ॥ १ ॥ यह जड़ है तू चेतन यौं ही, पनावत वरजोरी' । सम्यक दर्शन ज्ञान चरण निधि ये है संपत' तोरी, सदा विलसो शिवगोरी । छांडि दे या बुधि भोरी || वृथा ॥ २ ॥ सुखिया भये सदीव जीव जिन यासो ममता तोरी 1 'दौल' सीख यह लीजै पीजै ज्ञान पियूष कटोरी, मिटै परवाह कठोरी ॥ छांडि दे या बुधि भोरी ॥ वृथा. ॥ ३ ॥ (३२१) तोहि समझायो सौ सौ बार, जिया तोहि समझायो ॥ टेक ॥ देख सुगुरु की परहित में रति हित उपदेश सुनायो ॥ जिया. ॥ १ ॥ विषय भुजंग सेय सुख पायो, पुनि तिनसौ लपटायो ॥ स्वपद विसार रच्यौ " पर पद में, मदरत ? ज्यौं बोरायो ॥ जिया. ॥ २ ॥ तन धन स्वजन नहीं है तेरे, नाहक' नेह लगायो 1 क्यों न तजै भ्रम चाख समामृत, जो नित संत सुहायो ॥ जिया ॥ ३ ॥ अबहू समझ कठिन यह नरभव जिन वृष बिना गमायो । ते १४ विलख मनि १५ डारि उदधि में 'दौलत' को पछतायो । जिया. ॥ ४ ॥ o (३२२) अरे जिया, जग धोखे की टाटी १६ अरे ॥ टेक 11 झूठा उद्यम लोक करत हैं, जिसमें निशिदिन घाटी १७ ॥ अरे. ॥ १ ॥ १.क्यों २.भोली ३.प्रेम किया ४ मैल की ५. झोली ६. इससे ७. दुख के समुद्र में हिलोरें लेना ८. जबरदस्ती ९. यह तुम्हारी सम्पति है १०. सद्गुरु का परोपकार में प्रेम देखकर ११. दूसरे में लीन हुआ १२. शराब पीकर जिस प्रकार मतवाला हो जाता है १३. व्यर्थ १४. वे रोते हैं १५. समुद्र में मणि खोकर १६. टटिया, आड़ १७.घाटा, नुकसान । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003995
Book TitleAdhyatma Pad Parijat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanchedilal Jain, Tarachand Jain
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year1996
Total Pages306
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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