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________________ (१११) जीवादिक सत तत्व स्वरूप विचारो तो सही । निश्चय आह व्यवहार, सुरुचि उर धारौ तो सही ॥ तुम. ॥२॥ विजय महाविज त्याग सुसंजम धारौ तो सही ।। चहुँगति दुख का बीज, सबंध विचारौ तो सही ॥ तुम. ॥ ३ ॥ सब विभाव परत्यागि', सुझाव विचारौ तो सही । परमातम पद पाय जिनेश्वर तारो तो सही ॥ तुम. ॥ ४ ॥ (३१५) पद राग रेखता आपके हिरदै सदा सुविचार करना चाहिये । जाप कर निजरूप का निरधार करना चाहिये ॥टेक॥ त्यागफै परकी झलक निजभाव को परखा करो। चढ़ि वीतरागता शिखर, फिर न उतरना चाहिये। आपके ॥ १ ॥ धारिक समता सहज तज दीजिये ममता सबै । लोभ विषयनि के वि नाहक को गिरना चाहिये । आपके ॥ २ ॥ जार निज पर को सजन, कल्यान को सूरत यही ।। संसार सागर पार यों जल्दी से तिरना चाहिये आपके ॥ ३ ॥ श्रद्धा समझकर आचरन, जिनराज का मारग यही । हितदाय जिनेश्वर धर्म को इख्तयार करना चाहिये ॥ आपके ॥ ४ ॥ कविवर दौलतराम (पद ३१६-३३०) जीव तू अनादि ही तैं भूलो शिव गैलवा ॥ जीव. ॥ टेक ॥ मोह मदवार पियौ, स्वपद विसार २ दियौ, पर अपनाय लियौ, इन्द्रिय सुख में रचियौ, भवतै न भियौ१३ न तजियौ४ मन मैलवा ॥ जीव. ॥१॥ मिथ्या ज्ञान आचरन धरि कर कुमरन ५ तीन लोक की धरने तामैं कियो है फिरन, पायो न शरन, न लहायो सुख६ शैलवा ॥ जीव. ॥ २ ॥ अब नर भव पायो सुथल सुकुल आयौ, जिन उपदेश भायौ 'दौल' झट छिट कायो, पर परनति दुखदायिनी चुरैलवा ॥ जीव. ॥ ३ ।। १.हृदय में धारण करो २. परभवों का त्याग ३.हृदय में ४.आत्म स्वरूप का ५.निश्चय ६.आत्म भाव को ७. स्व पर ज्ञान ८.मार्ग ९.अपनाओ १०.रास्ता ११.शराब १२.भुलादिया १३.डरा १४.मन का मैल नही त्यागा १५.खोटा मरण १६.सुख रूपी पहाड़ १७.अच्छा स्थान १८.अच्छा कुल १९.चुडैल । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003995
Book TitleAdhyatma Pad Parijat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanchedilal Jain, Tarachand Jain
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year1996
Total Pages306
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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