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________________ (११०) सो तप तपो बहुरि नहि तपना सो जप जपो बहुरिन हि जपना सो ब्रत धरो बहुरि नहिं धरना, ऐसो मरो' बहुरि नहि मरना ॥ ऐसो. ॥ ३ ॥ पांच परावर्तन लखि लीजै, पांचों इन्द्री की न पतीजै । 'द्यानत' पांचों लच्छि लहीजै, पंच परम गुरू शरन गहीजै ॥ ऐसो. ॥ ४ ॥ कवि जिनेश्वरदास (३१२) घड़ी दो घड़ी मंदिर जी में जाया करो एजी जाया करो, जी मन लगायो करो ॥घड़ी. ॥ टेक ॥ । सब दिन घर' धंदा में खोया, कछु तो धर्म में बिताया करो ॥घड़ी. ॥ १ ॥ पूजा सुनकर शास्त्र भी सुनल्यौ, आध घड़ी तो जाप में बिताया करो ॥घड़ी. ॥ २ ॥ कहत जिनेश्वर सुनि भवि प्राणी, जावत मन को लगाया करो ॥घड़ी. ॥ ३ ॥ (३१३) राग-मरैठी जगउँ की झूठी सब माया, अरे नर चेत वक्त पाया ॥ टेर ॥ कंचन बरनी कामिनी जोवन में भरपूर, अंतर दृष्टि निहारते मलमूरत मशहूर । कुधी नर इनमें ललचाया ॥ अरे नर. ॥ १ ॥ लछमी तौ चंचल बड़ी बिजली के उनहार, बके फंदै सो बचो जी अपनी करो सम्हार ।। विवेकी मानुष भव पाया, अरे नर चेत वक्त पाया ॥ २ ॥ स्वच्छ सुगंध लगायके, कर के सब सिंगार । सिंह तन में तू रति करैजी सो शरीर है छार, वृथा क्यों इनमें ललचाया, अरे नर चेत वक्त पाया ॥ ३ ॥ तन धन ममता छांडिके'२ राग दोष निरवार । शिवमारग पग धारिये जी, धर्म जिनेश्वर सार । सुगुरु ने ऐसे बतलाया, अरे नर चेत वक्त आया ॥ ४ ॥ (३१४) तुम त्यागो जी अनादी भूल, चतुर विचारौ१३ तौ सही ॥ टेक ॥ मोह भरमतम भूल अनादी, तोडो तो सही । एजी निज हित का रख ज्ञान, गन" सुधारौ तो सही ॥ तुम. ॥१॥ १.ऐसा तप तपो २.फिर ३.ऐसा मरो कि फिर न मरना पड़े ४.विश्वास करना ५.घर का धंधा ६.जाते हुये भव को ७.संसार की ८.समय ९.सोने के से रंग की सभी १०.मल की मूर्ति ११.की तरह १२.छोड़कर १३.विचार करो १४.भ्रमरूपी अंधकार की जड़ १५.आंखे । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003995
Book TitleAdhyatma Pad Parijat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanchedilal Jain, Tarachand Jain
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year1996
Total Pages306
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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