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(१०९) चेतन नाम भयो जड़ काहे, अपनो नाम गमायो । तीन लोक को राज छांडिकैं, भीख मांग न लजायो ॥ जीव. ॥ ३ ॥ मूढ़पना मिथ्या, जब छूटै तब तू संत कहायो । 'द्यानत' सुख अनन्त शिव विलसो' यो सद्गुरू बतलायो । जीव. ॥ ४ ॥
(३०९). हो ! भैया मोरे ! कहु' कैसे सुख होय ॥ टेक ॥ लीन कषाय अधीन विषय के, धरम करै नहि कोय ॥ हो. ॥१॥ . पाप उदय लखि रोवत भोंदू। पाप तजै नहि सोय । स्वान वान ज्यो पाहन सूंघे सिंह हनै रिपु जोय ॥ हो. ॥ २ ॥ धरम करत सुख दुख अधसेनी', जानत है सब लोय । कर दीपक लै कूप परत है दुख पै है भव दोय ॥ हो. ॥ ३ ॥ कुगुरु कुदेव कुधर्म भुलायो देव धरम गुरु खोय । उलट चाल तजि अब सुलटै जो ‘द्यानत' तिरै जग तोय ॥ हो. ॥ ४ ॥
___ (३१०) कर पद दिढ़ हैं तेरे, पूजा तीरथ सारौ । जीभ नैन है नीकै° प्रभु गुन गाय निहारौ ॥ प्राणी. ॥ १ ॥ आसन श्रवन २ सबल है तोलौं३ ध्यान शब्द सुनि धारौ ।। जरा न आवै गर्द४ न सतावै संजम पर उपकारौ ॥ प्राणी. ॥ २ ॥ देह शिथिल मति विकल न तौ लौ तप गहि तत्व विचारौ अन्त समाधि पोत चढ़ि अपनो ‘द्यानत' आतम तारौ ॥ प्राणी. ॥ ३ ॥
(३११)
राग-भैरों ऐसो सुमरन कर मोरे भाई, पवन" थमै मन कितहूं न जाई ॥टेक ॥ परमेसुर सों सांच रही जे लोक रंजना भय तज दीजै ॥ ऐसो. ॥ १॥ . जप अरू नेम दोउ विधि धारै, आसन प्राणायाम संभारो। प्रत्याहार धारना कीजै, ध्यान समाधि महारस६ पीजै ॥ ऐसो. ॥ २॥
१.सुशोभित है २.कहो ३.देख कर ४.कुत्ते की तरह ५.पत्थर ६.पापों के लिए ७.पायेगा ८.सीधा हो जाय ९.हाथ पैर मजबूत है १०.अच्छे ११.देखो १२.कान १३.तब तक १४.रोग १५.चाहे हवा चलना छोड़ दे पर मन कहीं न जाय १६.समाधि रूपी महान रस पियो ।
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