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________________ (८३) अतुल सुख अतुल ज्ञान, अतुल वीर्य को निधान । काया में विराजे मान, द्रव्यकर्म विनिमुक्त' निश्चयनय लोक मान जैसे दधिमांहि छवि देखी हम अपने 'नैन' मुक्ति मेरी चेरी ॥ जड़ता ॥ २॥ भावकर्म असंयुक्त । परजय वप्रध तैसे जड़मांहि जीव । आनन्द की देरी ॥ जड़ता ॥ ३ ॥ Jain Education International ॥ जड़ता ॥ ४ ॥ (२३८) महाकवि द्यानतराय समकित ॥टेक॥ धिक ! धिक ! जीवन बिना दानशील तप ब्रत, श्रुत पूजा, आतम हेत न एक गिना ॥ ज्यों बिनु कंत कामिनी' शोभा, अंबुज' विन ज्यों सरवर सूना । जैसे बिना एकड़े बिन्दी' त्यों समकित बिन सरब गुना ॥ १ ॥ जैसे भूप बिना सब सेना नींव बिना मंदिर चुनना । जैसे चन्द बिहूनी रजनी इन्हें आदि जानो निपुना ॥ २ ॥ देव जिनेन्द्र साधु गुरु करुणा धर्म राग व्योहार भना १० निचे देव धरम गुरु आतम 'द्यानत' गहि मन वचन तना ॥ ३ ॥ ९ (२३९) कवि मक्खनलाल १४ ॥मोहि ॥ १ ॥ । मोहि सुन-सुन आवे हांसी पानी में मीन" पियासी ॥ टेक ॥ ज्यों मरा दौड़ा फिरे विपिन में ढूढें गन्ध वसे निजतन में । त्यों परमातम आतम में शठ १२, परमें३ करें तलासी कोई अंग भभूति लगावै, कोई शिर पर जटा चढ़ावै कोई पंच १५ अगनि तपता है रहता दिन रात उदासी ॥ मोहि ॥ २ ॥ कोई तीरथ बंदन जावे कोई गंगा जमुना न्हावे । कोई गढ़ गिरनार द्वारिका कोई मथुरा कोई काशी ॥ मोहि ॥ ३ ॥ कोई बंदें पढे पुरान ठठोल६, मंदिर मस्जिद गिरजा डोले । दूढ़ा सकल जहान न पाया जो घट घट का वासी ॥ मोहि ॥ ४ ॥ १.दासी_ २.रहित_३.सम्यक्त्व ४. पति ५. स्त्री ६. कमल ७. इकाई दहाई आदि ८. शून्य ९. रहित १०.कहा ११.मछली १२. मूर्ख १३. दूसरे में १४. खोज १५. पंचाग्नि १६. खोजता है । For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003995
Book TitleAdhyatma Pad Parijat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanchedilal Jain, Tarachand Jain
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year1996
Total Pages306
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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