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(८२ )
मात तात रज वीरज सों यह उपजी मल फुलवारी ।
अस्थिमाल' पल' नसा जाल की करम कुरंग थली पुतली चर्म मडी रिपु कर्म घड़ी जे जे पावन वस्तु जगत में ते इन स्वेद मेद कफ क्लेदमयी बहु, मद गद' व्यालि पिटारी ॥मत. ॥ ३ ॥ जा संयोग रोग अब तौलों, जो वियोग
लाल लाल जल क्यारी ॥ मत. ॥ १ ॥ यह मूत्र पुरीष' भंडा
धन धर्म
चुरावन हारी ॥ मत. ॥ २ ॥
सर्व वि
।
शिवकारी ।
"
बुध तासों न ममत्व करें यह, मूढ़ मतिन को प्यारी ॥ मत. ॥ ४ ॥ जिन पोसी ते भये सदोषी तिन पाये दुख भारी । जिन तप ठान ध्यान कर सुरधनु शरद जलद जल बुदबुद त्यों झट विनशनहारी । यातैं भिन्न जान निज चेतन, दौल होहु शमधारी ॥मत. ॥ ६ ॥
खोजी १, तिन परनी १२ शिवनारी ॥ मत. ॥ ५ ॥
(२३६)
कवि भंवर
सुझायो
सत गुरू सहज स्वभाव शुद्ध अखण्ड निराकुल आतम, तिरकाली परद्रव्यन को था निज समझा, रागद्वेष राग द्वेष भी निज से न्यारा, ऐसो भान दृष्टि निमित्ताधीन रही नित, पर कर्ता चितलायो ॥ जो प्रणामें १४ सो ही कर्ता है, ऐसो मंत्र बतायो ॥सत. ॥ २ ॥ भूत भविष्यत वर्तमान में है जैसो दर्शायो ।
करायो । सत. ॥ १ ॥
सिद्ध समान 'भँवर' नित है सो जो निजमांहि समायो ॥सत. ॥ ३ ॥
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॥टेक॥
समझायो || लपटायो १३
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(२३७)
कवि नयनानन्द
जड़ता बिन आप लखें, नाहि मिटें मोरी ॥ टेक ॥ लखों जब निज हिये नैन भयो मोह अतुल चैन सम्यक् के अभाव मैंने कीनी अब फेरी ॥ जड़ता ॥१॥
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१. अस्थियाँ २. मांस ३. खून ४. हिरण ५. मल ६. बिगाड़ा ७. पसीना ८. रोग ९. पुष्ट किया १०. अपराधी १९. शोषत किया १२. परिणय किया १३. लिपट गया १४. परिणमन किया।
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