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(७५)
भागचन्द्र शिवमहल बढ़न को, अचल प्रथम सोपान
महाकवि भूधरदास (२१७)
राग - मल्हार
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अब मेरे समकित सावन आयो । अब मेरे ॥ टेक वीति कुरीति मिथ्यामति' ग्रीषम पावस सहज सुहायो ॥ अनुभव दामिनि दमकन लागी, सुरति घटा घन छायो । बोलें विमल विवेक, सुमति सुहागिनि भायो ॥ २ ॥ गुरु धुनि गरज सुनत सुख उपजै मोर सुमन विहसरयो साधक भाव अंकुर उठे बहु जित तित हरष सबायो ' भूल धूल कहिं मूल न सूझत समरस जल झर लायो 'भूधर' को निकसैं अब बाहिर, निज निश्चू धर पायो ॥ ४ ॥
।
॥ ३ ॥
।
(२१८)
राग बंगाला
जग में श्रद्धानी जीव जीवन मुक्त हैंगे || जग में. ॥ टेक ॥ देव गुरु सांचे मानैं सांचो मानैं सांचो धर्म हिये' आनें ग्रन्थ तेही सांचे जानै जीवन की दया पालैं परनारी भाल° नैन जिनके जीव्य मैं संतोष धारैं हियँ समता विचारें, आगैं को न बंध पारै, पाछे २ सौं चुकत ३ हैंगे ॥ जग में. बाहिज ज१४ क्रिया अराधै अन्तर १५ सरूप साथै,
जे जिन उकत हैंगे ॥ जग में. ॥ १ ॥ झूठ तजि चोरी टालें, लुकत" हैंगे ॥ जग में. ॥२॥
|| 3 ||
'भूधर'
मुक्त
लाधैँ१६
कहूं न रुकत हैंगे ॥ जग मे. ॥ ४ ॥
महाकवि द्यानत (२१९)
बसि १७ संसार में पायो दुःख अपार
11 8 11
॥टेक॥
१. मिथ्यात्वरूपी ग्रीष्म २ . बिजली ४. जहां तहां ५. बढ़ गया ६. निश्चय कर पाया ७. सच्चे ८. हृदय में लाता है ९. कहा हुआ १०. देखन में ११. छिपते है १२. पीछे के १३. नष्ट होंगे १४. बहिरंग क्रियायें करना १५. अन्तरंग में आत्मस्वरूपका ध्यान करना १६. प्राप्त करते हैं १७. रहकर ।
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