SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 126
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (७६) मिथ्याभाव हिये धरयो, नहिं जानो सम्यकचार ॥ वसि ॥ १ ॥ काल अनादिहि हौं रुल्यो' हो, नरक निगोद मंझधार । सुरनर पद बहुत धरे पद पद प्रति आतम धार ॥ वसि ॥ २ ॥ जिनको फल दुख पुंज है हो, ते जाने सुखकार । भ्रममद पाय विकल भयो, नहिं गह्यो सत्य व्योहार ॥ वसि ॥ ३ ॥ जिनवानी जानी नहीं हो, कुगति विनाशनहार । 'द्यानत' अब सरधा' करो, दुख मेढि लह्यो ' सुखसार ॥ वसि ॥ ४ ॥ (२२०) ॥देखे. ॥टेक 11 देखे सुखी सम्यकवान सुख दुख को दुख रूप विचारैं धारैं अनुभव ज्ञान ॥ देखे. ॥ १ ॥ नरक सात में के दुख भोगें, इन्द्र लखै तिन मान । भीख मांग कैं उदर भरै न करैं चक्री को ध्यान ॥ देखे. ॥ २॥ तीर्थंकर पद को नहि चम्वें जपि उदय अप्रमान । कुष्ट आदि बहु व्याधि दहल न, चहत' मकरध्वज' थान ॥ देखे. ॥ ३ ॥ आधि व्याधि निरवाध अनाकुल, चेतन जोति पुमान" । 'द्यानत' मगन सदा तिहिमांहीं, नांही खेद" निदान ॥ देखे. ॥ ४॥ (२२१) काल हरैंगे । अब हम अमर भये न मरैंगे ॥ अब. ॥ टेक ॥ तन कारन मिथ्यात दियो १२ तज, क्यों करि देह धरेंगे ॥ १ ॥ उपजै मरे कालतैं प्रानी, तातैं ३ राग दोष जग बंध करत हैं इनको नाश देह विनाशी मैं अविनाशी भेदज्ञान नासी जासी हम थिरवासी १५, चोखे १६ हों निखरेंगे | अब ॥ ३ ॥ मरे अनन्त बार बिन समझैं, अब सब दुख विसरेंगे । 'द्यानत' निपट निकट दो आखर, बनि सुमरैं सुमरैंगे ॥अब ॥ ४ ॥ करेंगे | अब ॥ २ ॥ पकरेंगे १४ 1 १. भटका २ . ग्रहण किया ३. सत्यव्यवहार ४ नष्ट करने वाला ५. श्रद्धा ६. प्राप्त किया ७. सम्यग्दृष्टि ८ . चाहना ९. कामदेव १०. पुरुष ११. दुख१२ . त्याग दिया १३. इसलिये १४. पकड़ेगे १५. स्थिर रहने वाले १६. अच्छे । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003995
Book TitleAdhyatma Pad Parijat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanchedilal Jain, Tarachand Jain
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year1996
Total Pages306
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy