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________________ (७३) कवि नयनानंद (२१२) इक योगी असन' बनावै तिस भखत ही पाप नसावै । ज्ञान सुधारस जल भरलावै चूल्हा' शील बनावै ॥ कर्मकाष्ठ का चुग चुग बोल, ध्यान अगनि प्रजलाने । इक योगी असन बनावे ॥१॥ अनुभव भाजन निजगुन तंदुल, समता क्षीर मिलावै । सोऽहं मिष्ट निशंकित व्यंजन, समकित छोर लगावै ॥ इक. ॥ २ ॥ स्याद्वाद सतभंग मसाले, गिनती पार न पावै ।। निश्चय नय का चमचा फेरे विरत भावना भावै ॥ इक. ॥ ३ ॥ आप बनावे आपहिं खावै खावत नाहि अघावै।। तदपि मुक्ति पद पंकज सेवै, ‘नयनानंद' सिर नावै ॥ इक. ॥ ४ ॥ ५-सम्यग्दर्शन महाकवि बुधजन (२१३) धनि सरधानी३ जग में, ज्यों जल कमल निवास ॥ धनि. ॥ टेक ॥ मिथ्या तिमिर फट्यो प्रगट्यो शशि, चिदानंद परकास५ ॥१॥ पूरव कर्म उदय सुख पावें भोगत ताहि उदास । जो दुख में न विलाप करें निखैर ६ सहै तन त्रास ॥ धनि. ॥२॥ उदय मोह चारित परवशि है, ब्रत नहि करत प्रकास जो किरिया करि हैं निरवांछक'", करैं नहीं फल आस ॥ धनि. ॥ ३ ॥ दोष रहित प्रभु धर्म दयाजुत परिग्रह विन गुरु तास । तत्वारथ रुचि है जा के घर ‘बुधजन' तिनका दास ॥धनि. ॥ ४ ॥ (२१४) अब थे क्यों दुख पावो रे जियरा'९, जिनमत समकित धारौ ॥ टेक॥ निलज° नारि सुत व्यसनी मूरख, किंकर करत विगारो । सा नूम अब देखत भैया, केसे करत गुजारौ ॥अब. ॥१॥ १. भोजन २. खाते ही ३. शील रूपी चूल्हा ४. कर्म रूपी लकड़ी ५. जलाकर ६. जलाने के लिए ७. अनुभव रूपी बर्तन ८. गुण रूपी तंदुल ९. समता रूपी दूध १०. बघार ११. स्वयं बनाना १२.धन्य १३.श्रद्धानी १४.अंधकार फट गया १५.प्रकाश १६. बैररहित १७.बिना इच्छा १८.आप १९.प्राणी २०.निर्लज्ज। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003995
Book TitleAdhyatma Pad Parijat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanchedilal Jain, Tarachand Jain
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year1996
Total Pages306
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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