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(६५)
भागचंद ज्ञानानंदी पद, साधत सदा हुलासी हो ॥४॥
(१९०)
राग खमाच ज्ञानी मुनि छै' ऐसे स्वामी । गुनरास ॥टेक ॥ जिनके शैल' नगर मंदिर पुनि गिर कंदर सुख-वास ॥ १ ॥ नि:कलंक परजंक' शिला पुनि, दीप मृगांक उजास ॥२॥ मृग किंकर करुना वनिता पुनि, शील सलिलतप ग्रास ॥ ३ ॥ भागचंद से हैं गुरु हमरे तिनही के हम दास ॥ज्ञानी ॥४॥
(१९१)
राग खमाच श्री गुरु हैं उपगारी ऐसे वीतराग गुनधारी वे ॥टेक ॥ स्वानुभूति रमनी संग की, ज्ञान संपदा भारी वे ॥श्री. ॥१॥ ध्यान पिंजरा में जिन रोका चित३ खग चंचल चारी वे ॥२॥ तिनके वरन सरोरुह ध्यावै, भागचंद अघ टारी१४ वे ॥३॥
कविवर भूधरदास
(१९२)
राग मल्हार वे मुनिवर कब मिलि है उपगारी ॥टेक ॥ साधु दिगम्बर नगन निरम्बर,५ संवर भूषणधारी ॥ वे. ॥१॥ कंचन कांच बराबर जिनकैं ज्यों रिपु त्यों हितकारी । महल मसान मरन अरु जीवन, सम गरिमा ६ अरु गारी१७ ॥२॥ सम्यग्ज्ञान प्रधान पवन बल, तप८ पावक परजारी । सेवत जीव सुवर्ण सदा जे, काय कारिमा टारी ॥३॥ जोरि जुगल कर भूधर बिनबे, तिन पद ढोक° हमारी । भाग उदय दरसन जब पाऊं, ता दिन की बलिहारी ॥४॥
१. हैं २. पर्वत ३. शहर, गांव ४. पर्वत की गुफा ५. पलंग ६. चन्द्रमा का उजाला ७. नौकर ८. करुणा रूपी स्त्री ९. शील रूपी जल १०. तप रूपी ग्रास ११. उपकारी १२. क्रीड़ा करते हैं १३. चित्त रूपी चंचल पक्षी को १४. पाप दूर करने वाले १५. बिना वस्त्र १६. गौरव १७. गाली १८. तप रूपी आग जलाई १९. कालिमा २०. प्रणाम ।
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