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(६४) शिव वनरी' को ब्याहन उमगे, मोहित भविक जना ॥ मुनि. ॥ १ ॥ रतनत्रय सिर सेहरा बाँध, सजि संवर' वसना । संगरे बराती द्वादश भावन अरु दशधर्मपना ॥ मुनि. ॥ २ ॥ सुमति नारि मिलि मंगल गावत, अजपा (?) गीत घना ।। राग दोष की आतिश बाजी, छूटत अगनि कना । मुनि. ॥१॥ दुविध कर्म का दान बटत है, तोषित लोक मना । शुक्ल ध्यान की अगनि जलाकरि होमै कर्मघना ॥ मुनि. ॥ २ ॥ शुभ बेल्यां शिव बनरिवरी मुनि, अद्भुत हरज बना ।। निज मंदिर में निश्चल राजत 'बुधजन' त्याग घना ॥ मुनि. ॥ ३ ॥
कवि भागचंद (पद १८८-१९१)
(१८८)
राग जंगला शांति वरन मुनिराई वर लखि, उत्तर गुन गन सहित (मूल गुन सुभग) बरात सुहाई
॥टेक ॥ तपरथपै११ आरुढ़२ अनूपम, धरम सुमंगल दाई ॥ शांति. ॥१॥ शिव रमनी को पानिग्रहण३ करि, ज्ञानानन्द उपाई ॥ शांति. ॥२॥ भागचंद ऐसे वनरा को हाथ जोर सिरनाई ॥ शांति. ॥३॥
(१८९)
धन-धन" जैनी साधु अबाधिन, तत्व ज्ञान विलासी हो ॥टेक ॥ दर्शन बोधमई ६ निजमूरति, जिनको अपनी भासी हो । त्यागी अन्य समस्त वस्तु में अहंबुद्धि दुखदासी हो ॥१॥ जिन अशुभोपयोग की परनति, सन्ता सहित विनाशी हो । होय कदाच शुभोपयोग तो, तहँ भी रहत उदासी हो ॥ २ ॥ छेदत जे अनादि दुखदायक दुविध बंध की फांसी हो । मोह क्षोभ रहित जिन परनति, विमलं मयंक कलासी हो ॥ ३ ॥ विजय चाह दव दाह खुजावन,° साम्य सुधारस रासी हो ।
१. दुल्हन २. संवर रूपी वस्त्र ३. बारह भावनायें बराती ४. बहुत ५. अग्नि कन ६. घाति कर्म, ७. होम करना ८. शुभ मुहूर्त में ९. मोक्ष रूपी दुल्हन को वरण किया १०. दुल्हा देखकर ११. तप रूपी रथ पर १२. बैठकर १३. विवाह १४. हाथ जोड़कर सिर झुकाना १५. धन्य धन्य १६. ज्ञानमई १७. कभी १८. वहां भी १९. निर्मल चन्द्रमा की कला के समान २०. खुजलाने वाले।
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