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(५७) जाको गनराज' अंग पूर्वमय चुनी । सोई कही है कुन्द कुन्द, प्रमुख बहु मुनी ॥ जय जय. ॥ २ ॥ जे चर जड़ भये जिये मोह वारुनी । तत्व पाय चेते जिन थिर सुचित सुनी ॥जय जय. ॥ ३ ॥
कर्मफल पखारने हि विमलसुर धुनी। तज विलंब अब करो 'दौल' उर पुनी ॥ जय जय. ॥ ४. ।।
(१६८) अब मोहि जानि परी, भवोदधि तारन को हैं जैन ॥टेक ॥ मोह तिमिरौं सदा काल के छाय रहे मेरे नैन । ताके नाशन हेत लिया मैं अंजन जैन सु ऐन ॥अब. ॥ १ ॥ मिथ्यामती भेष को लेकर भाषत हैं जो बैन ।
सो वे बैन असार लखे मैं. ज्यों पानी के फैन ॥ अब. ॥ २ ॥ मिथ्यामती बेल जग फैली, सो दुख फलकी दैन । सतगुरु भक्ति कुठार हाथ लै, छेद लिया अति चैन ॥अब. ॥ ३ ॥ जा बिन जीव सदैव काल विधि वश सुखन लहै न । अशरन-शरन अभय दौलत अब रैन दिन जैन ॥अब. ॥ ४ ॥
___ (१६९) सुन जिन बैन, श्रवन १ सुख पायो ॥ टेक ॥ नस्यो तत्व दुर अभिनिवेशतम स्याद उजास कहायो । चिर विसरयो, लह्यो आतम चैन (?) ॥ श्रवन. ॥ १ ॥ दह्यो अनादि असंजम ३ दव” लहि व्रत सुधा सिरायौ । धीर धरी मन जीतन मन (?) श्रवन सुख ॥श्रवन. ॥ २ ॥ भरो विभाव अभाव सकल अब सकल रूप चित लायौ। दास लह्यौ अब अविचल जैन ॥श्रवन. ॥ ३ ॥
(१७०) और सबै जब द्वन्द्व मिटावो, लौ लावोजिन आगम ओरी५ ॥टेक ॥ है असार जग द्वन्द्व बन्धकर यह कछु गरजन सारत तोरी । १.गणधर २.शराब ३.पुण्य पवित्र ४.संसार सागर ५.मोहान्धकार ६.उसको नष्ट करने के लिए ७.अयन,मार्ग ८.देनेवाली ९.सुख नहीं पाता १०.दिन रात ११.कानों को सुख १२.प्रकाश १३.असंयम १४.लगन १५.तरफ १६.पूरी करना ।
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