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________________ (५१) (१४९) राग-विलावल कनड़ी मनकैं हरष अपार-चितकै हरष अपार, वानी सुनि ॥टेक ॥ ज्यों तिरषातुर अम्रत पीवत, चातक अंबुद' धारा ॥ वानी सुनि. ॥ १ ॥ मिथ्या तिमिर गयो ततखिन हो, संशय भरम निवार । तत्वारथ अपने उर दरस्यो जानि लियो निजसार ॥ वानी सुनि. ॥ २ ॥ इन्द नरिन्द फनीन्द पदीधर, दीसत रंक लगार । ऐसा आनंद 'बुधजन' के उर, उपज्यौ अपरंपार ॥ वानी सुनि. ॥ ३ ॥ (१५०) भवदधितारक नवकार, जगमांही जिनवान ॥ भव. ॥ टेक ॥ नय प्रमान पतवारी जाके, खेवट आतम ध्यान ॥ भव. ॥१॥ मन वच तन सुध जे भवि धारत, ते पहुंचत शिवथान । परत अथाह मिथ्यात भंवरतें, जे नहि गहत अजान ।। भव. ॥२॥ विन अक्षर' जिनमुखौं निकसी, परी वरनजुत° कान ।। हितदायक बुधजन को गनधर, गूंथे ग्रन्थ महान ॥ भव. ॥ ३ ॥ (१५१) राग-झंझोटी शिवधानी निशाशानी जिनवानि हो। शिव. ॥टेक ॥ भव वन भ्रमन निवारन-कारन, आपा पर पहचानि हो ॥ शिव. ॥१॥ कुमति पिशाच मिटावन लायक, स्यादर मंत्र मुख आनि हो ॥ शिव. ॥ २ ॥ 'बुधजन' मन वच तन करि निशिदिन सैवो सुख की खानि हो ॥शिव. ॥ ३ ॥ . (१५२) राग विलावल इकतालो सारद१३ ! तुम परसादतें, आनंद उर आया ।सारद. ॥टेक ॥ ज्यों तिरसातुर जीव को अम्रत जल पाया ॥ सारद. ॥१॥ नय परमान निखेंपते५ तत्वार्थ बताया । भाजी भूलि मिथ्या की निज निधि दरसाया ॥ सारद. ॥ २ ॥ १.प्यासा २.पीता है ३.बादल ४.ततक्षण ५.फणीन्द्र ६.गरीब ७.नौका ८.विना अक्षर ९.निकली १०.वर्णयुक्त ११.स्वपर १२.स्याद्वाद १३.सरस्वती १४.कृपासे १५.निक्षेप से १६.मिथ्यात्व की भूल भाग गई। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003995
Book TitleAdhyatma Pad Parijat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanchedilal Jain, Tarachand Jain
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year1996
Total Pages306
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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