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(५०) निष्ट दूध हूं पान कराये, विषनहि तजत भुजंग' ॥ ३ ॥ जो देखो सो ही मदमाते राचे विषय कुरंग । कैसे शुद्ध होय प्राणी जहां, परी कुआ में भंग ॥ ४ ॥ जेते देव जगत में देखे, राग द्वेष के संग । हलधर चक्र त्रिसूल गदाधर, त्रिया धरें अर्धंग ॥५॥ पंडित योगी यति मिल सब, रूप धरे बहिरंग । अंतस मोह लोभ माया कोउ, दम्भ भरे सर्वंग ॥ ६ ॥ बिन सतगुरु किमि होय नाथ संसार स्वप्न सम भंग। 'कुंज' भये शरनागत तेरे और न दूजो रंग ॥ ७ ॥
(१४७) आनंद मंगल आज हमारे आनंद मंगल आज ॥टेक ॥ श्री जिन चरण कमल परसत ही विघन गये सब भाज ॥१॥ सफल भई सब मेरि' कामना, सायक हिये विराज ॥२॥ नैन वयन मन शुद्ध करन को, मेटे११ श्री जिनराज ॥३॥
३- जिनवाणी महाकवि बुधजन पद (१५१-१५६)
(१४८)
राग ललित तितालो हो जिनवाणी जू तुम मोकौं तारोगी२ ॥हो. ॥टेक ॥ आदि अन्त अविरुद्ध वचनतें, संशय भ्रम निरवारोगी" ॥ हो. ॥१॥ ज्यों प्रतिपालत५ गाय वत्स कौं, त्यों ही मुझकौं पारोगी'६ । सनमुख काल बाघ जव आवै, तब तत्काल उवारोगी ॥ हो. ॥ २ ॥ 'बुधजन' दास वीनवै८ माता, या विनती उर धारोगी । उलझि रह्यौ हूं मोह जाल में, ताको तुम सुरझावोगी ॥ हो. ॥ ३ ॥
१. सर्प २. लीन हुये ३. हिरण ४. आधे अंग मे स्त्री धारण किये हैं ५. हृदय में ६. स्पर्श करके ७. भागना ८. मेरी ९. इच्छा १०. बचन ११. मिले १२.पार करोगी १३.अविरोधी १४.दूर करोगी १५.पालती है १६.पालोगी १७.पार करोगी १८.विनय करता हूं १९.उलझा हूं २०.सुलझाओगी।
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