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पहली बहू ने कहा- मुझे तो सब से बढ़िया खीर लगती है ।
दूसरी बहू ने कहा- मुझे तो घी से पूर्ण खिचड़ी अच्छी लगती है। तीसरी बहू ने कहा- मुझे तो साली धान्य, दाल और घी अच्छा
लगता है ।
चौथी बहू ने कहा- मुझे तो घी के साथ मूँग - चावल अच्छे लगते हैं । पाँचवी बहू ने कहा- मुझे तो मिठाई अच्छी लगती है । छठी बहू ने कहा -. मुझे तो लड्डू अच्छे लगते है।
सातवीं बहू जो सबसे छोटी थी, उसने कहा घर में जो कुछ भी हो, उसे याचक को देने के बाद भोजन करना अच्छा लगता है । जिस प्रकार का घर में धान्य हो, उसी से निर्वाह करना अच्छा है। दूसरे के यहाँ देखकर मन में उचाट होना अच्छा नहीं लगता है, क्योंकि संतोष ही मेरा धर्म है । ये सास-ससुर हमारे हैं, हमारे ऊपर कृपा है तथापि हमारा कर्म ही हमारे लिए प्रधान है।
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सातों बहुओं की बात-चीत धीर कौटुम्बिक ने सुनी और घर आकर अपनी पत्नी को कहा - छहों बहुओं को क्रमशः खीर, खिचड़ी, शालीदाल और घी, मूँग-चावल और घी, मिठाई और लड्डू देना, किन्तु सातवीं बहू को खाने में बचा हुआ भोजन देना ।
धीर की पत्नी ऐसा ही करने लगी, इससे सातवीं बहू बहुत दुःखी हो गई और अपने पति सांतल से कहा- मेरी सासू खाने में मुझे बचा खुचा अन्न देती है, इससे मैं मर जाऊँगी ।
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यह सुनकर उसके पति सांतल ने कहा - हे प्रिये ! तुम्हें दु :खी होने की आवश्यकता नहीं है। मैं विदेश जाकर धन कमा कर लाऊँगा और तुम्हारी इच्छा पूर्ण करूँगा ।
उसके बाद वह सांतल अपनी माता के पास गया और कहा- मैं धन
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शुभशीलशतक
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