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________________ उसकी पत्नी कमला ने उत्तर दिया - हे प्रिय! अपना घर मार्ग के बीच में पड़ता है और तुम्हारे गुणों से आकर्षित होकर, तुम्हारा नाम लेकर मेहमान आते हैं। मैं उनकी अच्छी तरह से मेहमानवाजी नहीं कर पाती, इसी कारण मैं दुबली हूँ और रात-दिन झूरती रहती हूँ। उसके बाद उन दोनों ने मेहमानों की अच्छी तरह सेवा की। धन की ओर भी नहीं देखा। फलतः मुक्ति योग्य पुण्य का उर्पाजन किया। ४७. बुद्धि का चातुर्य. - कोई मनुष्य मार्ग पर चलता हुआ जंगल में पहुँच गया। जंगल में उसे एक भालू मिला। मनुष्य की गंध पाते ही वह भालू उस पुरुष को मारने के लिये दौड़ा। तत्काल ही उस पुरुष ने उसके कान पकड़ लिए। भालू के कान पकड़ कर वह चलने लगा। भालू जब भी उस पर आक्रमण करता, उसी समय वह पुरुष उसके दोनों कानों को मरोड़ने लगता। कानों को मरोड़ते समय संयोग से उसके पास जो सिक्कों की थैली थी. वह फट गई और कई सिक्के जमीन पर गिर गए। संयोग से उसी समय उसके पीछे-पीछे कोई पुरुष आ रहा था। उसने यह दृश्य देखा, तब उसने प्रथम पुरुष को कहा- तुम ऐसी कौन सी विद्या का प्रयोग कर रहे हो, जिससे की भालू तुम्हारे अधीन हो गया? प्रथम पुरुष ने कहा - जब भी यह भालू आघात करने के लिए प्रयत्न करता है तो मैं इसके कान मरोड़ देता हूँ। कान मरोड़ने पर उससे सिक्के गिरते जाते हैं। यह सुनकर दूसरा आदमी बोला – यदि ऐसा है तो यह भालू मुझे दे दो। मैं भी कुछ सिक्के प्राप्त कर लूँ। पहला आदमी बोला - मैं इस भालू को तुम्हे कैसे दे सकता हूँ? दूसरे ने कहा - तुम कृपालु हो, कृपा कर यह भालू मुझे दे दो। प्रथम पुरुष ने वह भालू उसको दे दिया। वह दूसरा पुरुष उस भालू के कान मरोड़ने लगा। शुभशालशतक 58 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003993
Book TitleShubhshil shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2005
Total Pages174
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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