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अहं वेद्मि शुको वेत्ति, संजयो वेत्ति वा (नवा)। भारतं भारती वेत्ति, देवो जानाति केशवः॥
अर्थात् – मैं जानता हूँ, शुक जानता है, कह नहीं सकता कि संजय जानता है या नहीं, सरस्वती भारत (महाभारत) को जानती है और देव केशव को जानते हैं।
दक्षिण समुद्र से ११४ योजन दूर उत्तर दिशा स्थित अयोध्या नगरी में रहने वाला जैन कुम्भकार (कुम्हार) गिरनार पर्वत पर तीर्थ की यात्रा करने के लिए आया। वहाँ महर्षि कृष्णद्वैपायन का आश्रम था। उनके शिष्य से वह कुम्भकार मिला। बातचीत के दौरान शिष्य ने कहा - हमारे गुरु सब कुछ जानते है, सर्वज्ञ हैं।
कुम्भकार सोचने लगा - 'सर्वज्ञ के बिना कोई भी व्यक्ति सब कुछ नहीं जान सकता है।' यह सोचकर वह कुम्भकार व्यासजी के समीप गया
और पूछा - आपके द्वारा रचित महाभारत कथा का पति/नायक कौन है? व्यासजी ने उत्तर दिया - युधिष्ठिर आदि इस कथा के नायक हैं।
कुम्भकार ने पुनः पुछा - द्रौपदी के साथ उनका क्या सम्बन्ध है, क्या नाता है?
यह सुनकर व्यासजी ने उत्तर दिया - मैं नहीं जानता। पुनः कुम्भकार ने कहा
पतिश्वशु रताज्येष्ठे पतिदेवरताऽनुजे।
मध्यमेषु च पाञ्चाल्या-स्त्रितयं त्रितयं त्रिषु॥ अर्थात् - पति का बड़ा भाई ज्येष्ठ कहलाता है, वह ससुर तुल्य होता है। पति का छोटा भाई देवर होता है। अतः तीनों के मध्य में रहा हुआ (तृतीय लिङ्गधारी) अर्जुन ही पाञ्चाली/द्रौपदी का पति है।
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शुभशीलशतक
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